करचरण कृतं वा कायजं कर्मजं वा
श्रवण नयनजं वा मानसं वा पराधम्
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो

ॐ नमः शिवाय,

मेरे प्रिय पाठकगण प्रणाम आज बाबा विश्वनाथ और माँ अन्नपूर्णा की असीम अनुकंपा से काशी की अनसुनी कहानी का नौवा भाग प्रकाशित हो रहा है जिसके माध्यम से हम काशी की अनोखी और रहस्यमयी बातोंकी बहुत ही सहजता से अध्ययन कर रहे है मेरे आराध्य श्री काशीविश्वनाथ जी से इतनी ही प्रार्थना मेरे इस उपलब्धि का मुझे अहंकार ना हो जाय क्योंकि काशी में किसी प्रकार के अहंकार को बाबा विश्वनाथ ने स्थान नही दिया जब किसी को अहंकार हुआ या तो वो काशी से बाहर हुआ या काशी ने उसके उस अहंकार को तोड़ा है , इस मे किसी को भी किसी प्रकार का क्षमादान नही मिलता है चाहे वो मनुष्य हो या देवता या अन्य कोई भी प्राणी ।

हम लोग ने काशी की अनसुनी कहानी के अंतर्गत पढ़ा कि राजा दिवोदास का राज्य काशी में स्थापित होता है और राजा दिवोदास का पुण्य के प्रभाव से सारे देवताओ सहित बाबा विश्वनाथ को काशी छोड़कर जाना पड़ता है काशी विश्वनाथ सभी देवताओं से काशी में किसी भी प्रकार से प्रवेश के लिए बोलते है और समस्त देवता बहुत प्रयास के बाद भी राजा के पुण्य को कम नही कर पाते । तब भगवान भोलेनाथ चौसठ योगनियों को राजा के दोष (दोष मिलते ही उससे राज्यपद छीन लिया जाता और भगवान वापस आ जाते) को देखने के लिए भेजते है पंरतु वे 12 महीने वहाँ रहती है और उन्हें राजा के अंदर कोई दोष नही मिलता और वे वही स्थित हो जाती है । जब वह वहां से वापस नही आती है तो भगवान शिव ने सूर्यदेव को बुलाया और कहा हे सूर्यदेव आप काशी जाइये और वहां पर राजा दिवोदास धर्मपूर्वक राज्य कर रहे और वे अपने धर्म के प्रभाव से वहाँ देवताओ का प्रवेश वर्जित किया है यदि तुम काशी वहां जाकर उसको धर्म से भटकाने का प्रयास करो यदि तुम इस कार्य मे सफल हो जाते हो तो सभी देवताओं का पुनः काशी में प्रवेश शीघ्र हो जाएगा परन्तुं तुम इस बात का ध्यान रखाना की राजा का अनादार या अपमान मत करना क्योंकि धर्म के कार्य मे लगे हुए मनुष्यों का कोई अनादर करता है तो उसे उसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ता है ।

भगवान की आज्ञा मान कर सूर्यदेव काशी को गए राजा के ऊपर निगरानी करने लगे पर उन्हें राजा में थोड़ा सा भी कमी नही दिखी । कभी सूर्य भिक्षुक बन जाते तो कभी दानी कभी ज्योतिषी बन जाते तो कभी विद्वान ,कभी जटाधारी बन जाते तो कभी नागा साधु, ऐसे अनेक रूप धारण करके उन्होंने राजा का परीक्षा लिए राजा सभी मे सफल हुए(धर्म कि रक्षा के लिए कितने ऋषी महिर्षियों ने अपने प्राणो की आहुति देदी तो क्या काशी जैसी पवित्र नगरी को कौन मूर्ख मनुष्य पाप कर्म को करेगा) ।

इस प्रकार सूर्यदेव काशी में बारह स्वरूपो में स्थित हो गए


नाम। वर्तमान स्थान

1.लोलार्क लोलार्क कुंड के सीढ़ी पर नीचे
2.उतरार्क अलईपुर बकरियां कुण्ड के पास
3.सांबादित्य सूर्यकुण्ड D51/90
4.द्रौपदादित्य विश्वनाथ मंदिर के समीप अक्षयवट के नीचे
5.मयुखादित्य मंगलागौरी मंदिर में , बालाजी घाट
6.खखोलकादित्य कामेश्वर महादेव के दरवाजे पर , मछोदरी
7.अरुणादित्य त्रिलोचन महादेव की परिक्रमा पर A2/80
8.वृद्धादित्य मीरघाट हनुमान जी के दक्षिण में D3/15
9.केशवादित्य वरुणा आदिकेशव के मंदिर में
10.विमलादित्य जंगमबाड़ी खारी कुंआ के पीछे D 35/273
11. गंगादित्य ललिता घाट नेपाली मंदिर के नीचे D1/68
12.यमादित्य संकठा घाट के सीढ़ी पर

 


ये वर्तमान स्थान है इनकी यात्रा करने से रोग से शांति प्राप्ति होती है

इस प्रकार हम लोग ने आज द्वादश आदित्य की स्थान एवं वह वहां क्यों स्थापित हुए ये जाना आगे के भागों में उनके महात्म्य का अध्यन करेंगे

प्रणाम

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