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आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा रविवार को है। शरद पूर्णिमा की शीतल रात में मां लक्ष्मी की आराधना से धन, धान्य और संपदा की वृद्धि होती है। पंचागों के अनुसार स्नान, दान व व्रत की पूर्णिमा रविवार को पूरे दिन के साथ ही रात 2.30 बजे तक है। इस कारण सूर्यास्त के बाद किसी भी समय मां लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है।
धनलक्ष्मी की पूजन के साथ ही लाभदायक है चांदनी रात में खीर व खाजा-दूध रखकर खाना
नवीन चंद्र मिश्र वैदिक कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात आराध्य देव को सजा-संवार कर प्रसाद के रूप में सफेद वस्तु चढ़ाने का महत्व है। इसलिए श्रद्धालु प्राय: खीर, खाजा और दूध इत्यादि को खुली चांदनी में रखकर उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इससे मनुष्य ओजस्वी होता है। आचार्य मिश्र का कहना है कि इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना पूरे रात जागकर की जाती है।
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कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी भ्रमण करती हैं और धन-संपदा की वर्षा करती हैं। मां लक्ष्मी को जागृत करने के कारण ही शरण पूर्णिमा को कोजागरी पर्व भी कहा जाता है। इसके साथ ही शरद पूर्णिमा को गणपति, कलश, मातृका, नवग्रह, देवताओं के कोषाध्यक्ष कुवेर की पूजा करने के बाद श्री यंत्र की आराधना का महत्व है। कोजागरी पर्व में सफेद फूल, फल, कपड़े और बर्तन का महत्व है। चांदनी रात में सूई में धागा डालने की भी परंपरा है। इससे आंखों की रौशनी बढ़ती है।
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