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अश्विन माह के शुक्ल पक्ष पर रविवार को शरद पूर्णिमा है। शास्त्रीय दृष्टिकोण से शरण पूर्णिमा की रात में आसमान से अमृत की बूंदें टपकेंगी। इस रात गाय के दूध से बनी खीर को खुले आकाश के नीचे रखने की परंपरा है। जिसमें रात में आसमान से टपके अमृत बूंद के रूप में खुले स्थान पर रखे खीर में गिरता है। जो खीर को अमृत तुल्य बना देता है। अमृत टपके खीर का सेवन करने वाला जातक दीर्घायु होता है। खीर के सेवन से श्वांसजनित बीमारी से परेशान व्यक्ति एवं दमा रोग से पीड़ित लोगों को काफी लाभ मिलता है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक इस दिन शुभ मुहूर्त में किया गया हर अनुष्ठान फलदायी होता है। पूर्णिमा के दिन से कार्तिक व्रत स्नान और दीपदान की शुरुआत होगी। श्री सत्यनारायण व्रत आरंभ करने के लिए यह रात सबसे उत्तम माना जाता है।
छत पर खीर रखने की है परंपरा: श्रीमद्भागवत पुराण, यज्ञ मीमांसा एवं कई अन्य शास्त्रो में यह वर्णित है कि पूर्णिमा को रात में गाय के दूध से बनी खीर को मिट्टी या किसी अन्य पात्र में रखकर छतों एवं अन्य सुरक्षित खुले स्थानों रखना चाहिए। रातभर खीर खुले आकाश के नीचे रहने से अमृत तुल्य हो जाता है।
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चंद्रमा की शीतलता और अमृत वर्षा का दिखेगा मनोरम दृश्य
शरद पूर्णिमा के मौके पर आकाश से चंद्रमा की शीतलता और अमृत वर्षा का मनोरम दृश्य दिखेगा। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने 16 हजार गोपियों के साथ वृंदावन में रास रचाया था। महानिशा में विहार करने का निश्चय कर भगवान वृंदावन पहुंचे थे। वहां का मनोरम दृश्य देख उन्होंने अपनी मुरली से तान छेड़ी। जिसे सुनकर गोपियां उनके पास चली आयीं और रासलीला करने लगीं।
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दीप दान का है महात्मय
पूर्णिमा के दिन घी के दीपदान का महात्मय है। यज्ञ मीमांसा एवं श्री मद्भागवत पुराण में घी के दीपक का दान करने को बल, ऐश्वर्य एवं सौभाग्यदायिनी बताया गया है।
महादशा वालों के लिए चंद्र दर्शन है फलदायी
- शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की महादशा से पीड़ित व्यक्ति को सफेद वस्त्र धारण कर चंद्रमा का दर्शन करना चाहिए। ऐसे जातक को चंद्रमा के प्रकाश पुंज में टहलना चाहिए। इससे ग्रहों की शांति होगी। जातकों द्वारा दान करने से महादशा से राहत मिलती है। -आचार्य श्रीकृष्ण, ज्योतिषाचार्य
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