श्री काशी विश्वनाथ एवं माता अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से आज हम काशी की अनसुनी कहानी का सोलहवा भाग लेकर उपस्थित है जिसमे हम भगवान सूर्य के काशी में स्थित 12 स्वरुपों का वर्णन एव महत्व पढ़ रहे है आज उन्ही 12 स्थानों में से 9 वर्णन तो हो चुका है शेष का वर्णन आज करेंगे ,जिनका नाम विमलादित्य, यमादित्य और गंगादित्य है ।

कार्तिकेय जी कहते है अब विमलादित्य की महिमा सुनाता हु सुनो एक विमल नामक वयक्ति था वह धन पुत्रादि से सम्पन्न था परंतु दुर्भाग्य वश उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसने अपने धन , घर और स्त्री को छोड़कर काशी में आकर भगवान सूर्य की उपासना करता था । इसप्रकार एकदिन भगवान सूर्य उसके पास आये और उससे वर मांगने को कहते हुए ये कहा कि तुम अपने कुष्ठ रोग को ठीक करने के अलावा जो चाहे वर मांग सकते हो । तब उस विमल ने कहा कि जिस मूर्ति की मैंने आपकी पूजा की है उसका यदि कोई दर्शन करे तो उसके कुल में किसी को कभी भी कुष्ठ रोग ना हो ।

तब भगवान सूर्य उसके वाक्चातुर्य से प्रसन्न होकर उसे तथास्तु कहा और कहा यह स्थान में मैं सदा निवास करूँगा और ये स्थान सदा तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा ।इसके बाद विमल स्वरुपवान होकर अपने घर गया । जो भी मनुष्य इस विमलादित्य कि कथा को सुनता है उसका मन निर्मल और पवित्र हो जाता है ।

Gangaditya

 

 

 

अब गंगादित्य की महिमा सुनो जब भगीरथ जी गंगा को लेकर काशी में आये तो स्वयं सुर्य भगवान उनके दक्षिण में स्थित हो गए और उनकी स्तुति करने लगे और आज भी वही स्तुति करते है जो भी मनुष्य गंगादित्य का दर्शन करता है उसके समस्त रोग समाप्त हो जाते है ।

 

 

 

 

 

 

 

Yamaditya

यमादित्य के महात्म्य के बारे में बताते हुए कार्तिकेय जी कहते है कि इनकी स्थापना स्वयम इनके पुत्र यम नें की थी तब से यह वरदान है जो मनुष्य यमादित्य का दर्शन करता हैं उसे कभी भी यम यातना नही होती है यदि कोई मनुष्य अपने पितरों पिण्ड दान यम तीर्थ पर करता है वह तुरंत मुक्ति को प्राप्त हो जाते है ।

 

 

 

 

इस प्रकार मित्रो आज मैंने आप को विमलादित्य, गंगादित्य, यमादित्य के बारे बताते हुए सूर्य के 12 स्थानों का वर्णन पूरा किया , अब अगले भाग में पढ़ेंगे की काशी विश्वनाथ ने काशी में आनेके लिए और क्या प्रयास किये

हर हर महादेव

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