एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।

आज काशी विश्वनाथ एवं माता अन्नपूर्णा की कृपा से काशी की अनसुनी कहानी का ग्यारहवां भाग आपके समक्ष है जिसके द्वारा आप और हम काशी ही नही अपितु काशी में स्थित अनेक रहस्यमयी स्थान, मंदिरों और कुण्डों के बारे में अद्भुत जानकारी प्राप्त कर रहे है । अब से पूर्व के भागों में हमने अध्ययन किया है कि काशी से भगवान शिव एवं अन्य देवता चले जाते है और फिर  भगवान शुव सूर्य एवं चौसठ योगिनियो को काशी भेजते है तब भगवान सूर्य काशी में ही स्थित हो जाते है , इसी क्रम में सूर्य काशी में ही बारहो स्थान में स्थापित हुए उनके उन स्थानो में से आज दूसरे स्थान उत्तरार्क के बारे में अध्ययन करेंगे ।

स्कंद जी अगस्त जी को जब लोलार्क की महिमा बताने के बाद उत्तरार्क कि महिमा बताते हुए कहते है , काशी के उत्तर दिशा में एक कुण्ड है जहां भगवान सूर्य उत्तरार्क के नाम से स्थित है । वहाँ पर जो घटना घटित हुई है अब उसके बारे में सुनो काशीमे एक प्रियव्रत नाम का एक ब्राह्मण था उसकी पत्नी सुंदर, सुशील और धर्मपरायण थी उनकी एक कन्या सन्तान थी जिसका नाम था सुलक्षणा और जब वह बढ़ी हुई तो प्रियव्रत को उस कन्या की विवाह की चिन्ता हो गई और उसी चिन्ता में वह ज्वर से पीड़ित होता है और उचित इलाज ना होने के कारण उसकी कुछ दिनों पश्चात मृत्यु हो जाती है । पति की मृत्यु केंपश्चात उसकी पत्नी भी उसके साथ सती हो जाती है इस प्रकार माता पिता के मृत्यु हो जाने पर सुलक्षणा अंत्यत दुखित हो जाती है और अपने प्रारब्ध को समझकर अपने इद्रियों को वश में कर उसी कुंड के समीप घोर तपस्या प्रारम्भ की । तपस्या के समय रोज उस कुंड पर एक बकरी आती और दिन भर उसी कुंड के समीप बैठी रहती और शाम को उस कुंड का जल पीकर अपने स्वामी के यहां चली जाती थी । इस प्रकार यह सारा तपस्या क्रम पांच छः वर्षो तक चलता रहा । और वहां एक दिन शिव पार्वती जी  विहार कर रहे थे और पार्वती जी ने उस कन्या को देखा तो भगवान शिव से प्रार्थना की कि इस कन्या के ऊपर थोड़ी कृपा करें और इसे वरदान देकर अनुगृहीत करे ।

भगवान शिव उसे वर देने के लिए उद्यत हुए और उसके पास जाकर उससे बोले कि हम तुमपर प्रसन्न है कोई वर मांगो । तब सुलक्षणा ने आँख खोला और अपने समक्ष भगवान शिव एव माता पार्वती का दर्शन किया और तभी सामने उस बकरी को देखा  और सोचा अपने लिए तो पूरा संसार चाहता यदि इस बकरी का भला हो जाये तो अच्छा होगा इस लिए  उसने भगवान शिव से उस बकरी के ऊपर कृपा करने की प्रार्थना की । भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और कहा तुमने अपनी तपस्या का फल इस बकरी को देने का कह कर बहुत बड़ी परोपकार की बात कही है तब भगवान शिव ने सुलक्षणा से पूछा कि किस प्रकार से इस बकरी के ऊपर कृपा की जा सकती है ।

सुलक्षणा ने कहा – यह बकरी मेरी तपस्या के काल मे ब्रह्चार्य पूर्वक हमेशा यही रहती थी ।

इसलिए इस कुंड का नाम बकरी कुण्ड हो जाय , और इसका जन्म काशीनरेश के यहां हो  औऱ वहां समस्त सुख का उपभोग करने के पश्चात मोक्ष को प्राप्त हो।

भगवान शिव ने तथास्तु कहा और अंर्तध्यान होगये तब से वह अर्क कुण्ड बकरी कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस प्रकार आज हम लोग ने भगवान उतरार्क की महिमा जाना आगे सूर्य के तृतीय स्थान सांबादित्य की महिमा को जानेंगे

महादेव

 

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कैसे उत्पन्न हुआ बकरी कुण्ड
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आज काशी विश्वनाथ एवं माता अन्नपूर्णा की कृपा से काशी की अनसुनी कहानी का ग्यारहवां भाग आपके समक्ष है जिसके द्वारा आप और हम काशी ही नही अपितु काशी में स्थित अनेक रहस्यमयी स्थान, मंदिरों और कुण्डों के बारे में अद्भुत जानकारी प्राप्त कर रहे है । अब से पूर्व के भागों में हमने अध्ययन किया है कि काशी से भगवान शिव एवं अन्य देवता चले जाते है और फिर  भगवान शुव सूर्य एवं चौसठ योगिनियो को काशी भेजते है तब भगवान सूर्य काशी में ही स्थित हो जाते है , इसी क्रम में सूर्य काशी में ही बारहो स्थान में स्थापित हुए उनके उन स्थानो में से आज दूसरे स्थान उत्तरार्क के बारे में अध्ययन करेंगे
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