विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।

लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥

सभी पाठक गण को सादर प्रणाम । आज भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा की आशीर्वाद से काशी की अनसुनी कहानी का तेरहवाँ भाग प्रकाशित हो रहा हैं इस भाग में आज हम सूर्य के मयुखादित्य स्वरूप का महिमा और महात्म्य का अध्ययन करेंगे ।

कार्तिकेय जी जब सांबादित्य और द्रौपदादित्य कि महिमा का वर्णन कर दिए तब मयुखादित्य के बारे में बताते हुए कहते है की बहुत समय पूर्व भगवान सूर्य ने गभस्तीश्वर नामक महालिंग और मंगला गौरी की स्थापना की और उनकी तपस्या शुरू कर दी । तपस्या का तेज इतना फैला की पूरे संसार मे उनके शरीर से किरण निकल कर फैलने लगी । उस प्रकार सूर्य के आसपास केवल सूर्य की किरणें ही दिखाई देती थी सूर्यदेव नही । पूरा संसार जब उनके ताप से जलने लगा तो भगवान शिव ने संसार के दुख दुरने करने के लिए सूर्य के पास गए और उन्हें तपस्या से उठाते हुए कहा कि ‘हे सूर्य तुम्हे अब तपस्या करने की कोई आवश्यकता नही है । अब कोई वर मांगो ।‘जब भगवान सूर्य ने अपने आराध्य देव को अपने आंखों के सामने देखा तो उन्हें साष्टांग प्रणाम किया और उनकी स्तुति की  जो इसप्रकार है –

चौसठ नामो का शिवाष्टक

।। रविरुवाच ।। ।।

देवदेव जगतांपते विभो भर्ग भीम भव चंद्रभूषण ।

भूतनाथ भवभीतिहारक त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

चंद्रचूडमृड धूर्जटे हर त्र्यक्ष दक्ष शततंतुशातन।

शांतशाश्वत शिवापते शिव त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

नीललोहित समिहितार्थद द्वयेकलोचन विरूपलोचन ।

व्योमकेशपशुपाशनाशन त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

वामदेवशितिकंठशूलभृच्चंद्रशेखर फणींद्रभूषण।

कामकृत्पशुपते महेश्वर त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद।।

त्र्यंबक त्रिपुरसूदनेश्वर त्राणकृत्त्रिनयनत्रयीमय।

कालकूट दलनांतकांतक त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

शर्वरीरहितशर्वसर्वगस्वर्गमार्गसुखदापवर्गद ।

अंधकासुररिपो कपर्दभृत्त्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

शंकरोग्रगिरिजापते पते विश्वनाथविधिविष्णु संस्तुत ।

वेदवेद्यविदिताऽखिलेंगि तत्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।

विश्वरूपपररूप वर्जितब्रह्मजिह्मरहितामृतप्रद ।

वाङमनोविषयदूरदूरगत्वां नतोस्मि नतवांछितप्रद ।।


इसके बाद देवी पार्वती सहित महादेव जी की परिक्रमा की और मंगला गौरी की स्तुति की जो इस प्रकार है –

मंगला गौरी को प्रसन्न करने वाला मंगलागौरी का मंगलाष्टक

।। रविरुवाच ।। 

देवि त्वदीयचरणांबुजरेणुगौरीं भालस्थलीं वहति यः प्रणतिप्रवीणः ।

जन्मांतरेपि रजनीकरचारुलेखा तां गौरयत्यतितरां किल तस्य पुंसः ।।

श्रीमंगले सकलमंगलजन्मभूमे श्रीमंगले सकलकल्मषतूलवह्ने।

श्रीमंगले सकलदानवदर्पहंत्रि श्रीमंगलेऽखिलमिदं परिपाहि विश्वम्।।

विश्वेश्वरि त्वमसि विश्वजनस्य कर्त्री त्वं पालयित्र्यसि तथा प्रलयेपिहंत्री ।

त्वन्नामकीर्तनसमुल्लसदच्छपुण्या स्रोतस्विनी हरति पातककूलवृक्षान् ।।

मातर्भवानि भवती भवतीव्रदुःखसंभारहारिणि शरण्यमिहास्ति नान्या ।

धन्यास्त एव भुवनेषु त एव मान्या येषु स्फुरेत्तवशुभः करुणाकटाक्षः ।।

ये त्वा स्मरंति सततं सहजप्रकाशां काशीपुरीस्थितिमतीं नतमोक्षलक्ष्मीम् ।

तान्संस्मरेत्स्मरहरो धृतशुद्धबुद्धीन्निर्वाणरक्षणविचक्षणपात्रभूतान् ।।

मातस्तवांघ्रियुगलं विमलं हृदिस्थं यस्यास्ति तस्य भुवनं सकलं करस्थम् ।

यो नामतेज एति मंगलगौरि नित्यं सिद्ध्यष्टकं न परिमुंचति तस्य गेहम् ।।

त्वं देवि वेदजननी प्रणवस्वरूपा गायत्र्यसि त्वमसि वै द्विजकामधेनुः ।

त्वं व्याहृतित्रयमिहाऽखिलकर्मसिद्ध्यै स्वाहास्वधासि सुमनः पितृतृप्तिहेतुः ।।

गौरि त्वमेव शशिमौलिनि वेधसि त्वं सावित्र्यसि त्वमसि चक्रिणि चारुलक्ष्मीः ।

काश्यां त्वमस्यमलरूपिणि मोक्षलक्ष्मीस्त्वं मे शरण्यमिह मंगलगौरि मातः ।।


इस प्रकार शिव जी और माता मंगलादेवी मंगलाष्टक का पाठ करके भगवान सूर्य ने दोनों को प्रणाम किया और चुपचाप हो कर ख़ड़े हो गए ।

शिव जी बोले -हे सूर्यदेव तुम मेरे नेत्र में निवास करते हो जिससे मैं चराचर जगत को देख पाता हूं , तुम मेरी आठ मूर्तियों में से एक हो आज तुमने जो मेरे चौसठ नाम के द्वारा जो अष्टक स्तोत्र का पाठ किया यदि कोई इस अष्टक स्तोत्र का पाठ करेगा तो उसे मेरी भक्ति शीघ्र प्राप्त होगी । यह मंगलागौरी का अष्टक पाठ मंगलाष्टक के नाम से विख्यात होगा । जो भी मनुष्य इस स्तोत्र कपाठ करेगा उसे शीघ्र मंगल की प्राप्ति होगी । कोई व्यक्ति यदि काशी से दूर रहता है तो इन दोनों स्तोत्र का पाठ करके मनुष्य दुर्लभ काशी वास का फल प्राप्त कर सकता है ।तुम्हारे द्वारा स्थापित गभस्तीश्वर लिंग सभी प्रकार की सिद्धि को प्रदान करने वाला है यदि कोई मनुष्य इनका पूजन करेगा तो उसे पुनः माता के गर्भ में जन्म नही धारण करेगा । यदि कोई स्त्री चैत्र शुक्ल तृतीया को मंगलागौरी की पूजा करे तो कभी भी उसे दरिद्रता नही होती । अतः हे सूर्य तुम्हारे शरीर से यहां पर मयूखसमुह (किरण पुंज) निकला इस कारण तुम्हारा नाम मयुखादित्य होगा तुम्हारी पूजा करने से किसी को रोग व्याधि नही होगी। रविवार को देर्शन करनेसे दरिद्रता का नाश होगा, इस प्रकार सूर्य को वर देकर विश्वनाथ जी अंतर्ध्यान हो गए और सूर्यदेब वही पर निवास करने लगे.

इस प्रकार मित्रो आज मयुखादित्य की महिमा का वर्णन हुआ आगे सूर्य के अन्य अवतारों की कथा का वर्णन है

प्रणाम

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2 replies
  1. Bal krishna Das Gujrati
    Bal krishna Das Gujrati says:

    Jai shree krishna …

    bahoot hi acchI baatein Pata chali es kathaa ke dawara..

    Maa Manglagauri ji aur Gabhstiswar Mahadev ji sabhi perr kripaa banaye rakhei

    Reply

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