ॐ आदित्याय नमः

मेरे प्रिय पाठकगण आप सभी को सादर प्रणाम आज हम काशी के अनसुनी कहानी के क्रम में सूर्य के 12 स्थानों में से खखोलकादित्य और गरुडेश्वर लिंगनक महात्म्य का अध्ययन करेंगे ।

कार्तिकेय जी कहते है कि वाराणसी के त्रिलोचन महादेव के उत्तर भाग में खखोलकादित्य जी का मंदिर है अब इनकी महिमा सुनो इनके महात्म्य के अध्ययन और इनका दर्शन करने से मनुष्य को समस्त प्रकार के रोगों का नाश एवं दास्य भाव से मुक्ति मिलती है । बहुत काल पूर्व कद्रू और विनीता नाम की दो बहनें थी एकबार दोनों ने शर्त लगाई की सूर्य के घोड़ा का रंग कैसा है तो कद्रू ने उसका रंग चितकबरा बताया और विनीता ने सफ़ेद और जो शर्त हारेगा वो दूसरे का दासी होगी फिर अगले दिन प्रातःकाल को देखने का निश्चय किया और दोनों अपने  अपने कक्ष में चली गयी । कद्रू ने अपने पुत्रों से कहा यदि तुम अभी सूर्य के घोड़े के पास जाकर चिपक जाओ तो दूर से उसका रंग चितकबरा दिखेगा और मैं शर्त जीत जाऊंगी । उनकी आज्ञा मानकर के उनके पुत्र उसी समय जाकर सूर्य के घोड़े के पास ऐसे लग गयेजैसे दूर से देखने पर लगे कि घोड़ा ही चितकबरा है और प्रातः समय जब दोनों बहनें आयी और उन्हें उस समय वहां पर सूर्य के घोड़े का रंग चितकबरा दिखा तब विनीता शर्त हार गई फिर उसने कद्रू की दासी होना स्वीकार कर लिया , बहुत समय बाद विनीता के पुत्र गरुड़ जी ने उन्हें उस दास्यभाव से मुक्त कराया तब विनीता ने अपने पुत्र से कहा कि मैंने जो भी दासी होने दोष हुआ है उसके दूर करने के लिए मैं काशी जाना चाहती हूं तब गरुड़ जी ने कहा मैं भी चलूंगा और दोनों साथ मे काशी आये और गरुड़ जी एक शिवलिंग की स्थापना और उनकी पूजा अर्चना शुरू किया और विनीता ने खखोल्क आदित्य की उपासना शुरू की इस प्रकार दोनों तपस्या करने से शिव और सूर्य दोनों प्रसन्न हो गए और भगवान शिव गरुड़  जी आये और गरुड़ को विष्णु का वाहन होने का वरदान दिया और समस्त वेद पुराण का ज्ञाता होने का वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए उसके बाद सूर्य भी आये और विनीत को वरदान दिया कि उसके समस्त पाप काट जाए और कहा यह जो भी मनुष्य आएगा और इस तीर्थ में स्नान करेगा और मेरे देर्शन करेगा व्व निरोगी हो जाएगा ।

ईस प्रकार आज आपके समक्ष मैंने सूर्य के खखोलकादित्य की उत्पत्ति और महात्मको अध्ययन किया आगे सूर्य के अन्य स्थानों का भी वर्णन करेंगे

प्रणाम V

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