ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
यह त्रयम्बक “त्रिनेत्रों वाला”, रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को संबोधित है।
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ संपादित करें
त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
इव = जैसे, इस तरह
बन्धनात् = तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्योः = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा = न
अमृतात् = अमरता, मोक्ष
इस महामत्रँ से लाभ निम्न है –
धन प्राप्त होता
जो आप सोच के जाप करते वह कार्य सफल होता
परिवार मे सुख सम्रद्बि रहती है
जिवन मे आगे बढते जाते है आप
जप करने कि विधि –
सुबह स्नान करते समय गिलास मे पानी लेकर मुह गिलास के पास रखकर ग्यारह बार मत्रँ का जप करे फिर उस पानी को अपने उपर प्रवाह कर ले,
महादेव कि कृपा आप के उपर बनी रहगी
Jai shree krishnaa …
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Bal krishna Das Gujarati…
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Online Kashi Pandit Team