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मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। इस महीने यह एकादशी 20 नवंबर दिन रविवार को है। रविवार को एकादशी प्रातः 10:41 तक है। उसके बाद द्वादशी तिथि आरंभ होगी। एकादशी का व्रत द्वादशी वृद्धि होने पर ही किया जाता है। शास्त्रों के उल्लेख के अनुसार प्राचीन काल में मुरासुर नाम का राक्षस था। सभी देव उसके अत्याचार से त्राहि-त्राहि कर रहे थे। उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली और उसे उसके विनाश के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने मुरासुर का वध किया और देवता को निर्भय कर दिया। मुरासुर के वध होने पर भगवान विष्णु की आज्ञा से एकादशी का उद्गम हुआ था। देवताओं ने पविष्णु को प्रसन्न करने के लिए एकादशी व्रत आरंभ करने की प्रार्थना की। इसी दिन में एकादशी व्रत का आरंभ हुआ था। इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। उत्पन्ना एकादशी का व्रत में भगवान विष्णु भगवान की पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम और लक्ष्मी सूक्तम  का पाठ करें। इस एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा करने का समय प्रातः 10:41 बजे से 12:30 बजे तक उत्तम है। इसमें अभिजीत मुहूर्त भी रहेगा। इसलिए एकादशी व्रत का फल दोगुना हो जाएगा।

उम्पन्ना एकादशी के दिन हुई थी एकादशी माता की उत्पत्ति, व्रत करने से बरसती है विष्णु जी की कृपा

भगवान विष्णु को सफेद मिष्ठान,फल पंचमेवा आदि से भोग लगाएं। यदि संभव हो तो विष्णु और लक्ष्मी जी को पंचामृत स्नान कराएं। तत्पश्चात उनके चरणामृत को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें। वैसे तो एकादशी व्रत का परायण अगले दिन होता है, लेकिन शाम को सूर्यास्त के बाद भी भगवान विष्णु को भोग लगा कर आरती करने के बाद व्रत का समापन किया जा सकता है। एकादशी व्रत के समापन पर या अगले दिन विद्वानों एवं ब्राह्मणों को भी भोजन करा सकते हैं। शास्त्रों में कहा गया कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। सभी बाधाएं दूर होकर के परम पद को प्राप्त करता है। मकान, भूमि-भवन, घर में कलेश, विवाह में विलंब, कर्ज की अधिकता आदि दोषों को समाप्त करने के लिए इस एकादशी का व्रत सर्वोत्तम माना गया है। शास्त्रों में उल्लेखित है कि एकादशी व्रत के दिन अधिकतर व्यक्ति निराहार रहे तो बहुत श्रेष्ठ होता है, किंतु यदि निराहार व्रत करना संभव न  हो तो फलाहार जूस अथवा दूध का का सेवन कर सकते हैं।

(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।) 

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