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चढ़त बरसे आदरा, उतरत बरसे हस्त, बीच बरसे मघा सुखी रहे गिरहस्थ। मौजूदा परिवेश में जलवायु के बदलते मिजाज के बावजूद भी घाघ भड्डुरी की यह उक्ति खेती-किसानी पर सटीक बैठती है। सैकड़ों साल पूर्व जब आधुनिक तकनीक का विकास नहीं हुआ था, मौसम की भविष्याणियां तब के मौसम वैज्ञानिक व कृषि पंडित जन कवि घाघ की उक्तियां किसानों का पथ प्रदर्शन करती थी। जिसका अनुसरण किसान आज भी करते आ रहे हैं।

घाघ की उक्तियों के मुताबिक खेती के लिए 27 नक्षत्रों में आर्द्रा नक्षत्र का वही महत्व है जो तारामंडल में ध्रुवतारा का। सो इस छठवें नक्षत्र में गंगा स्नान,दान व पूजा आदि का विशेष महत्व होता है। ऐसे में यहां गंगा स्नान के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। बुधवार को आषाढ़ कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि में शाम 6.30 बजे भगवान सूर्य को आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश किए। इसी के साथ किसानों का उत्साह बढ़ गया है। आचार्य श्रीकृष्णानंद जी पौराणिक ‘शास्त्री जी के मुताबिक यह नक्षत्र 6 जुलाई की रात 09 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आर्द्रा नक्षत्र को वर्षा का कारक माना जाता है। इस नक्षत्र के आरंभ से ही वर्षा प्रकृति पर मेहरबान होती है। इस नक्षत्र में बारिश होने से अच्छी पैदावार की संभावना बढ़ जाती है।

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तीन दिनों तक पृथ्वी रहती है रजस्वला

  • ज्योतिषाचार्य पं.मुन्ना जी चौबे ने बताया कि आर्द्रा नक्षत्र के शुरूआती तीन दिन पृथ्वी रजस्वला रहती है। लिहाजा इन तीन दिनों में जुताई व बुआई आदि खेती कार्य वर्जित हैं। रजो धर्म के बाद गर्भ धारण की प्रक्रिया होती है, उसी तरह पृथ्वी माता फसल उत्पादन के लिए पूरी तरह तैयार होती है। मत्स्य पुराण व मनु स्मृति के अनुसार आर्द्रा नक्षत्र में स्नान, दान आदि सत्कर्मों से ऊर्जा के श्रोत भगवान सूर्य प्रसन्न होकर पृथ्वी पर अपना पूर्ण प्रकाश विखेरते हैं। इससे अच्छी वर्षा होती है और धरती की गोद भर जाती है। उन्होंने बताया कि बुध की राशि मुथुन में सूर्य होने तथा बुधवार के दिन ही नक्षत्र परिवर्तन करने से अच्छी वर्षा व खेती से जुड़े लोगों को लाभ की उम्मीद है।

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