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नव संवत्सर के साथ ही चैत्र नवरात्र का भी शुभारंभ दो अप्रैल को हो जाएगा। चैत्र नवरात्र का महत्व इसी बात से स्पष्ट होता है कि इसी दिन परम पिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि के लिए श्रेष्ठ अवधि होता है। मां भगवती की पूजा-उपासना के लिए भी यह समय श्रेष्ठ होता है। घरों में कलश स्थापना की प्राचीन परंपरा है। प्रतिपदा से लेकर के नवमी पर्यंत माता भगवती के नौ रूपों की उपासना की जाती है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सूर्योदय काल से लेकर के प्रतिपदा तिथि पर्यंत पूर्वाह़न 11.28 बजे तक सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होगा। उक्त जानकारी मां तारा ज्योतिष संस्थान के आचार्य पं.अनिल मिश्रा ने दी है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को मानने वाले लोग इस नवरात्र में अपने घर को मंगल ध्वज तोरण आदि से सुसज्जित करते हैं। इस समय भगवती के साथ माता गौरी का भी दर्शन-पूजन प्रतिदिन क्रमानुसार किया जाता है। महा अष्टमी का व्रत नौ अप्रैल को किया जाएगा। महानवमी 10 अप्रैल को होगा। नवरात्र से संबंधित हवन-पूजन नवमी पर्यंत कर लिए जाएंगे। इसी दिन रामनवमी का पावन पर्व सर्वत्र बड़े ही धूमधाम के साथ परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा।

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नवरात्र व्रत का पारण 11 अप्रैल को दशमी तिथि में किया जाएगा। पं.मिश्रा ने कहा कि देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्र में मां दुर्गा का आगमन घोड़े पर हो रहा है,जबकि प्रस्थान भैंसे पर होना है। यह दोनों ही सवारियां लोगों को सतर्क और जागरुक रहने का संदेश देती हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक है। ऐसे में सत्ता पक्ष को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। बंगीय परंपरा के अनुसार भी माता का आगमन शुभ संकेत नहीं दे रहा है। देश में अस्थिरता,तनाव,अचानक बड़ी दुर्घटना,भूकंप,चक्रवात आदि से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आम जनमानस के सुखों में कमी की अनुभूति होती है। भैंस की सवारी का अर्थ रोग,कष्ट का बढ़ना है। ऐसे में लोगों को अपनी सेहत के प्रति जागरुक रहने की जरूरत है। इस नवरात्र में माता का पूजन-अर्चन क्षमा प्रार्थना के साथ किया जाना जरूरी है।

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