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पितृपक्ष 11 सितंबर से शुरू हो रहा है, 26 सितंबर को पितृ विसर्जन है। पिशाचमोचन पर इस बार पिंडदानियों के भारी संख्या में पहुंचने की संभावना है। इसके मद्देनजर पुरोहितों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। वहीं, घाटों पर गाद होने से तीर्थ पुरोहित चिंतित हैं। गया में श्राद्ध के पूर्व पिशाचमोचन में पितरों के निमित्त त्रिपिंडी श्राद्ध का विधान है।

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तीर्थराज प्रयाग के भी लोग गया जाने के पूर्व यहां त्रिपिंडी का विधान पूरा करते हैं। कोविड के चलते पिछले दो वर्षों के दौरान काशी में श्राद्धकर्म के लिए न के बराबर लोग पहुंचे थे। अब सब कुछ सामान्य होने के बाद पिशाचमोचन और गंगा घाटों के तीर्थ पुरोहितों को पितृपक्ष में ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। पिशाचमोचन के तीर्थ पुरोहित परिवार के सौरभ दीक्षित ने बताया कि इस बार श्राद्ध के लिए ज्यादा भीड़ आने की संभावना है।

घाटों पर गाद-मिट्टी, पुरोहित चिंतित

गंगा घाटों पर तीर्थ पुरोहितों की अलग चिंता है। बाढ़ का पानी उतरे दो से तीन दिन ही हुए हैं। सभी घाटों व सीढ़ियों पर अभी गाद और कीचड़ जमा है। चौकियां रखने के लिए कहीं भी स्थान नहीं है।

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सौ से अधिक पंडा-पुरोहित कराते हैं श्राद्ध

पिशाचमोचन तीर्थ पर सौ से ज्यादा पंडा-पुरोहित श्राद्ध-तर्पण कराते हैं। पिशाचमोचन तीर्थ पर सफाई और छांव के स्थायी-अस्थायी इंतजाम हो चुके हैं।

शास्त्रत्तेक्त है यहां पिंडदान

पिशाचमोचन का गरुड़ समेत कई पुराणों में उल्लेख है। तीर्थ पुरोहित पवन दीक्षित ने बताया कि अकाल मृत्यु, प्रेतबाधा से मुक्ति दिलाने के लिए यहां श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहां त्रिपिंडी श्राद्ध फलदायी होता है।

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