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पितरों की तिथि याद न होने पर सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण किया जा सकता है। यह मोक्षदायिनी अमावस्या 25 सितंबर को है। मान्यता है कि अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या को पितृ अपने धाम लौट जाते हैं। पितृ परिवार की खुशहाली देखकर प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में खुश रहकर दान-पुण्य करना चाहिए।
शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या का महत्व बताया गया है। पितरों का इस अमावस्या में श्राद्ध किये जाने पर इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि के बाद किसी पीपल के पेड़ के नीचे श्राद्ध को बनाया गया सात्विक भोजन रखें। एक तांबे के पात्र में शुद्ध जल रखकर दीया जलाएं। मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर पितरों का वास होता है। श्राद्ध के आखिरी दिन इस उपाय को करने से उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
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गाय को हरा चारा खिलाएं
- श्राद्ध के आखिरी दिन उन पितरों के लिए कर्मकांड किये जाते हैं, जिनकी मृत्यु की तिथि परिजनों को मालूम नहीं होती है। इस दिन पितरों के आत्मा की शांति के लिए गोधूलि बेला में गाय को हारा चारा खिलाना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
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संध्या के समय दीप जलाएं
- पितृपक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण की क्रिया के बाद गरीब ब्राह्मणों को अपनी यथाशक्ति अनुसार दान देने से भी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। संध्या के समय दो, पांच या 16 दीप भी जलाने चाहिए।
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