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रविवार को आश्विन मास की पूर्णिमा यानि शरद पूर्णिमा है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब रहेगा। इसे रास पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास किया था। इसी दिन मध्य रात में मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करके भक्तों के दुख दूर करती हैं।
यह जानकारी देते हुए हरि ज्योतिष संस्थान लाइनपार के ज्योतिर्विद पंडित सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अमृत की वर्षा करते हैं। श्रीमद् भागवत महापुराण में तो चंद्रमा को औषधि का देवता बताया गया है। चांद की रोशनी को भी स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी माना गया है, इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात आसमान के नीचे चावल और दूध से बनी खीर रखी जाती है। इस रात चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ती हैं और औषधीय गुण प्राप्त होते हैं।
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पूजा -विधि-
- इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। आप नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान भी कर सकते हैं। नहाते समय सभी पावन नदियों का ध्यान कर लें।
- नहाने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
- सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
- पूर्णिमा के पावन दिन भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना का विशेष महत्व होता है।
- इस दिन विष्णु भगवान के साथ माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना भी करें।
- भगवान विष्णु को भोग लगाएं। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को भी शामिल करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
- इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है।
- चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा अवश्य करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देने से दोषों से मुक्ति मिलती है।
- इस दिन जरूरतमंद लोगों की मदद करें।
- अगर आपके घर के आसपास गाय है तो गाय को भोजन जरूर कराएं। गाय को भोजन कराने से कई तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।
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