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sharad purnima vrat : आध्यात्मिकता के साथ ही वैज्ञानिकता से परिपूर्ण शरद पूर्णिमा (आश्विन पूर्णिमा) का व्रत नौ अक्तूबर यानि रविवार को मनाया जायेगा। इस दिन गाय के दूध में बने खीर को चंद्रमा की रोशनी में पूरी रात रखा जाता है और उसे सुबह खाने की परम्परा है। वहीं अनुष्ठान का भी श्रद्धालु आयोजन करते हैं।

शरद पूर्णिमा व्रत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए फेफना थाना क्षेत्र के इंदरपुर थम्हनपुरा निवासी आचार्य डॉ. अखिलेश उपाध्याय बताते हैं कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब आते हैं, इसके चलते उनकी रोशनी सुखदायक और उपचारीक बन जाती है।

पौराणिक में वर्णन है कि शरद पूर्णिमा वर्ष में एकमात्र दिन होता है जब चंद्रमा अपने 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं, जिसके चलते वह मुष्य इस दिन, चंद्रमा अनंत काल या अमृत का सुख देता है और चंद्रमा का प्रकाश उन गुणों से परिपूर्ण होता है जो किसी के शरीर और आत्मा को पोषण दे सकता है।

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एक अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा व्रत भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं के साथ अवतरित हुए थे और शरद पूर्णिमा के दिन वह राधा सहित अन्य देवियों के साथ महारास नृत्य करते हैं। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी रात में पृथ्वी का चक्कर लगाती हैं और सभी मनुष्यों के कार्यों को देखती हैं। शरद पूर्णिमा व्रत करने से भगवान चंद्रमा, भगवान विष्णु व महादेवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।

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