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चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों में शीतला माता को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी बताया गया है। कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी और कुछ जगह अष्टमी पर होती है।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के चैप्टर चेयरमैन ज्योतिषाचार्य आचार्य मनीष स्वामी ने बताया कि गुरुवार को सप्तमी व अष्टमी शुक्रवार को होगी। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव हैं। इन दोनों तिथियों में मां शीतला की पूजा की जा सकती है। निर्णय सिंधु के अनुसार इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। इसलिए सप्तमी को पूजा और व्रत गुरुवार को किया जाना चाहिए। शीतलाष्टमी शुक्रवार को मनाई जाएगी।
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इस दिन जो महिला, माता का श्रद्धापूर्वक पूजन करती है, उनका परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं। मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है। गर्मी में होने वाले चेचक जैसे संक्रामक रोगों से मां रक्षा करती हैं। माता शीतला को शीतलता प्रदान करने वाली माता कहा गया है। इसलिए उनको समर्पित भोजन पूरी तरह शीतल रहे। माता के भक्त भी प्रसाद स्वरूप ठंडा भोजन ही अष्टमी के दिन ग्रहण करते हैं। इस दिन घरों में चूल्हा जलाना वर्जित होता है।
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