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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शनिवार से महालय श्राद्ध शुरू हो गए है।15 दिनों तक चलने वाले श्राद्व 25 सितंबर को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर संपन्न होंगे। पहले दिन लोगों ने यमुना नदी के किनारे पहुंचकर अपने-अपने पितरों का तर्पण किया वहीं घरों में भी पितरों को जल दान किया गया। जिन लोगों के पितरों की मृत्यु पूर्णिमा पर हुई थी उनके द्वारा पहले दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया गया। घाटों पर पानी ना होने के कारण लोगों ने काफी दूर चल कर नदी किनारे जाकर पितरों का तर्पण किया।

आचार्य किशन स्वरूप दुबे बताते हैं कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के दिन श्राद्ध पक्ष कहलाते है।यह दिन ऋषि-मुनियों और पूर्वजों के स्मरण व तर्पण के दिन भी माने जाते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का काफी महत्व होता है। श्राद्ध यानी श्रद्धा यत क्रियते अर्थात श्रद्धा से जो अंजलि दी जाती है उसे श्राद्ध कहते हैं। जिन पितरों व पूर्वजों ने हमारे कल्याण के लिए कठोर परिश्रम किया, हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अपना जीवन बिता दिया उन सभी का श्राद्ध पक्ष में श्रद्धा भाव के साथ स्मरण किया जाता है। यह जिस योनि में हो उस योनि में उन्हें सुख शांति मिले इसलिए श्राद्ध के दिनों में पिंडदान और तर्पण का विधान है।

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श्राद्ध पक्ष में नदी सरोवर या तालाब के किनारे पिंडदान व तर्पण का विशेष महत्व होता है। जो लोग यहां पर नहीं पहुंच पाते है वह घरों में ही अपने पूर्वजों का पिंडदान व तर्पण करते हैं। माना जाता है कि पित्र पक्ष में पूर्वज आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। इसलिए बिधि बिधान के साथ लोग अपने पितरों को अघ्र्य देने के साथ तर्पण भी करते है। पितृपक्ष में पूर्वज पृथ्वी पर ही विचरण करते हैं इसलिए 15 दिनों का समय महालय श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। जिनकी मृत्यु पूर्णिमा पर हुई थी उनके परिजनों ने पहले दिन ही श्राद्ध किए। ब्राह्मणों को बुलाकर विधि विधान से तर्पण कराया। पहले दिन यमुना नदी के किनारे काफी संख्या में लोग सुबह तर्पण के लिए पहुंचे। यहां पर अमावस्या तक लोग तर्पण के लिए आते रहेंगे। वही हिंदू घरों में पहले दिन श्राद्ध करने के साथ लोगों ने श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों व अपने मान्यों को भोजन कराकर दक्षिणा भी भेंट की।

कैसे करें पितृपक्ष में श्राद्ध

श्राद्ध के संबंध मे यमुना नदी के किनारे मां पीतांबरा धाम मंदिर के पुजारी पंडित अजय दुबे ने बताया कि पितृपक्ष में दक्षिण की ओर मुख करके पितरों का ध्यान करते हुए उनका तर्पण करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद पंच ग्रास अर्थात गाय, कुत्ता, कौआ, कीट व पतंगा के भाग को निकालकर व ब्राम्हण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। उन्होंने बताया पितृपक्ष में तर्पण, ब्रह्मभोज व दान करने से पित्र ऋण से मुक्ति मिलती है। पिता के जीवित रहते यदि माता की मृत्यु हो जाए तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। उन्होंने बताया पितृ पक्ष में वृद्ध आश्रम में अन्न दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं।

श्राद्ध में कब है कौन सा संयोग

11 सितंबर सर्वार्थसिद्धि योग

13 सितंबर अमृतसिद्धि योग

16 सितंबर रवियोग

17 सितंबर रवियोग

25 सितंबर सर्वार्थ सिद्धि योग

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