॥  ॐ ॥

  बिना गंगा नहाय कैसे पाए गंगा स्नान का फल ?

गंगा की महिमा

       गंगा तरंग रमणीय जटा कलापं,  गौरी निरंतर विभूषित वाम भागं  |
     नारायण प्रियमनंग मदापहारं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधं ||

प्रणाम हमारे प्यारे भाई बहिनों आज हम आपके समक्ष काशी के अनसुनी कहानी का दुसरा भाग लेकर आये है  जिसके द्वारा हम काशी के बारे मे अनसुनी कहानी के बारे में जानने के प्रयास कर रहें हैं ।

प्रथम कड़ी मे हमने यह जाना था कि  काशी एवं मणिकर्णिका कि उत्पत्ति कैसे हुई अब इसी क्रम में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि पुरे विश्व की ही उत्पत्ति तो भगवान ने की है फिर काशी ही भगवानको क्यों इतना प्रिय है और वह यहाँ नित्य क्यों विराजते है , एवं इस माध्यम से भगवती गंगा के महत्व और महिमा का वर्णन करेंगे , तथा गंगा में स्नान की क्या  विधी है और  जो मनुष्य  गंगा स्नान नही कर सकते उनको किस प्रकार से गंगा स्नान का फल प्राप्त हो ।

पुर्व क्रममें हमने जो पड़ा कि श्री महादेव ने श्रीविष्णु जी को वरदान में कहा कि मैं यहाँ हमेशा निवास करुंगा काशीमे बडा से बडा पापीभी यदि मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे पहले रुद्रपिशाच होकर फिर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है ।

अब गंगा जी की  महिमा बताते हुए कहते है – हे  विष्णो सूर्यवंश के महाप्रतापी राजा भगीरथ  ने अपने पुर्वजों के उद्धार के निमित्त हिमालय पर तपस्या की गंगा जी को पृथ्वी पर लाने को उद्यत हुए क्योंकि दुर्गति पड़े हुए जीवों का उद्धार गंगा के सिवा कोई अन्य नही कर सकता क्योंकि वह सिद्ध विद्या स्वरूपा इच्छा ज्ञान एवं क्रिया रूप तीन शक्तियों वाली दयामयी आनंद मृत रूपा तथा शुद्ध धर्म स्वरूपिणी है गंगा को मैं अखिल विश्व की रक्षा के लिए लीला पूर्वक अपने मस्तक पर धारण करता हूं। जो गंगा जी का सेवन करता है उसने सब तीर्थों में स्नान कर लिया सब  यज्ञ की दीक्षा लेली  और संपूर्ण व्रत का अनुष्ठान का दिया।

हे विष्णु विष्णु कलयुग में कलुषित चित्त वाले , पराये धन को रखने वाले तथा विधिहीन कर्म करनेवाले मनुष्यों के लिए गंगा जी के अलावा कोई उद्धार करने वाला नही है । जो मनुष्य पितरो के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़ घी और तिल के साथ शहद मिलाकर खीर गंगा जी मे डालते हौ , उसके पितरसौ वर्षतक तृप्त बने रहते है और वे संतुष्ट होकर अपनी संतान को नानाप्रकार की मनोकामना पूरी करते है ।

जैसे  बिना इच्छा के भी अग्नि का स्पर्श भी अंग को जला देता है उसी प्रकार से बिना इच्छा के गंगा स्नान  भी मनुष्य के समस्त पापों को भस्म कर देता है । जो गंगा स्नान के लिए चलता है और रास्ते मे मर जाता है वह भी निःसंदेह गंगा स्नान का फल प्राप्त करता है। जैसे क्रोध से तप का , काम से बुद्धि का , अन्याय से लक्ष्मी का , अभिमान से विद्या का तथा पाखण्ड कुटिलता एवं छल कपट से धर्म का नाश होता है उसी प्रकार से गंगा जी के दर्शन मात्र से समस्त पापोंका नाश हो जाता है । पितर सदा यह कहते है कि कोई हमारे कुल में गंगा स्नान करने वाला होगा जो हमारा तर्पण गंगा के तट पर करेगा जिससे हमारा उद्धार हो।

समस्त कार्य को करने के लिए तो मुहूर्त देखना चाहिए परंतु गंगा स्नान के लिए बिना मुहूर्त के जाना चाहिए । जो पितरों के निमित्त गंगाजल से शिवलिंग को अभिषेक कराते है उनकें पितर बडे भारी नरक से भी निकल जाते है । चंद्र और सूर्यग्रहण पर किया गया गंगा स्नान लाख गुना अधिक फल देंता है । जो मनुष्य गंगा दशहरा पर गंगा स्नान करते है और निम्न स्तोत्र का पाठ करते है * उनके समस्त प्रकार के पाप से तुरंत छूट जाते है एवं मोक्ष को प्राप्त होते है ।

ॐ नमः शिवायै गंगायै शिवदायै नमोनमः । नमस्ते विष्णुरूपिण्यै ब्रह्ममूर्त्त्यै नमोस्तु ते ।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै शांकर्यै ते नमोनमः । सर्वदेवस्वरूपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये ।।  
सर्वस्यसर्वव्याधीनां भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोस्तु ते । स्थास्नुजंगमसंभूत विषहंत्र्यै नमोस्तु ते ।।  
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोस्तु ते । तापत्रितय संहंत्र्यै प्राणेश्यै ते नमोनमः ।।
शांति संतानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्तये । सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्तये ।।
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमोनमः । भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोस्तु ते ।।
मंदाकिन्यै नमस्तेस्तु स्वर्गदायै नमोनमः । नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमोनमः ।। 
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमोनमः । त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमोनमः ।। 
नंदायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः । नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमोनमः ।।
बृहत्यै ते नमस्तेस्तु लोकधात्र्यै नमोस्तु ते । नमस्ते विश्वमित्रायै नंदिन्यै ते नमोनमः ।। 
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमोनमः । परापरशताढ्यायै तारायै ते नमोनमः ।।
पाशजालनिकृंतिन्यै अभिन्नायै नमोस्तु ते । शांतायै च वरिष्ठायै वरदायै नमोनमः ।।
उग्रायै सुखजग्ध्यै च संजीविन्यै नमोस्तु ते । ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै दुरितघ्न्यै नमोनमः ।।
प्रणतार्ति प्रभंजिन्यै जगन्मात्रे नमोस्तुते । सर्वापत्प्रतिपक्षायै मंगलायै नमोनमः ।।
शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे । सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ।।
निर्लेपायै दुर्गहंत्र्यै दक्षायै ते नमोनमः । परापरपरायै च गंगे निर्वाणदायिनि ।।
गंगे ममाग्रतो भूया गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः । गंगे मे पार्श्वयोरेधि गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः ।।
आदौ त्वमंते मध्ये च सर्वं त्वं गां गते शिवे ।।

त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान्पर एव हि । गंगे त्वं परमात्मा च शिवस्वतुभ्यं नमः शिवे ।।
य इदं पठते स्तोत्रं शृणुयाच्छ्रद्धयापि यः । दशधा मुच्यते पापैः कायवाक्चित्तसंभवैः ।।
रोगस्थो रोगतो मुच्येद्विपद्भ्यश्च विपद्युतः । मुच्यते बंधनाद्बद्धो भीतो भीतः प्रमुच्यते ।।
सर्वान्कामानवाप्नोति प्रेत्य च त्रिदिवं व्रजेत् । दिव्यं विमानमारुह्य दिव्यस्त्रीपरिवीजितः ।।
गृहेपि लिखितं यस्य सदा तिष्ठति धारितम । नाग्निचोरभयं तस्य न सर्पादि भयं क्वचित ।।
ज्येष्ठे मासे सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता । संहरेत्त्रिविधं पापं बुधवारेण संयुता ।।
तस्यां दशम्यामेतच्च स्तोत्रं गंगाजले स्थितः । यः पठेद्दशकृत्वस्तु दरिद्रो वापि चाक्षमः ।।
सोपि तत्फलमाप्नोति गंगां संपूज्य यत्नतः । पूर्वोक्तेन विधानेन यत्फलं संप्रकीर्तितम ।।

 हे विष्णो केवल  गंगा ही मुक्ति देने में समर्थ है, किन्तु उसमे अविमुक्त क्षेत्र में मेरे निवास स्थान के गौरव से विशेष रूप से मुक्तिदायिनी हो गयी है। जो मनुष्य काशी के गंगा घाटो की मरम्मत कराते है देवमंदिरो के जीर्णोद्धार कराते है वे मेरे लोक (कैलाश) में चिरकाल तक निवास करते है । मनुष्यों की हड्डी जबतक गंगा जी के जल में रहती है उतने हजार वर्षों तक वे स्वर्ग में रहते है ।

अगस्त जी बोले – संसार कई मनुष्य ऐसे है जो गंगा स्नान की इच्छा एवं श्रद्धा तो रखते है पर स्नान कर नही सकते तो क्या कोई उपाय है जिससे दूर से ही गंगा स्नान का फल प्राप्त हो सके ?

स्कंद जी ने कहा – हे अगस्त जी !  जान पड़ता है देवाधिदेव महादेव ने इसी कारण से गंगा को मस्तक पर धारण कर रखा है , एक परम गोपनीय उपाय है जिससे देवनदी गंगा में स्नान करने का पूरा फल प्राप्त होता है यह उपाय उसी को बताना चाहिए जो भगवान शिव और विष्णो में विश्वास रखने वाला और मोक्ष की इच्छा रखने वाला हो , दूसरे किसी के सामने इस कि चर्चा नही करनी चाहिए यह परमरहस्यमय साधन सभी पापो के नाश करने वाला है । वह उपाय है गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र

इसे घर मे पवित्र स्थान पर पवित्र भाव से बैठ कर सुस्पष्ट अक्षरों में रोज पाठ करना चाहिए

यदि कोई मनुष्य इसका रोज पाठ करे तो उसके समस्त पाप समाप्त हो जाते है और उसको गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है एवं उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और वह सदा पवित्र रहता है

जिसके घर मे गंगासहस्त्रनाम की पुस्तक का पूजन नित्य होता है उसके समस्त भय समाप्त हो जाते है एवं उसका घर सदा पवित्र रहता है

इस प्रकार मेरे प्रिय पाठकगण आपके समक्ष हमने शिव जी एवं स्कंद जी के मुख से कही हुई गंगा महिमा का वर्णन किया जिसका जितना भी वर्णन करे वह कम है अगले क्रम में काशी की महिमा का वर्णन करते हुए अन्य कथा का वर्णन करूँगा

प्रणाम

जय श्री  राम

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