काशी  की अनसुनी कहानी सीरीज-1

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    काशी एवं मणिकर्णिका तीर्थ की उत्पत्ति


मंगलाचरण

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।

वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥


जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ।

जय श्री कृष्णा!

आज श्री काशी विश्वनाथ माता अन्नपूर्णा की कृपा  एवं प्रेरणा से काशी के अनसुनी कहानी नामक सीरीज का शुभारंभ हो रहा है जिसके अंतर्गत हम काशी के बारे में कई अनोखी एवं अनसुनी कहानियों को आपके समक्ष रखेंगे  जिससे काशी मे स्थित समस्त तीर्थों के महात्म्य एवं उनके नियम और उनके  दर्शन पुजन के  विधियों को भलीभांति जानेंगे

इसी क्रम में सर्वप्रथम आज हम काशी की उत्पत्ति एवं भगवान विष्णु के द्वारा मणिकर्णिका तीर्थ के उत्पत्ति के बारे मे तथा  काशी की स्थापना  कब एवँ क्योँ हुई , यहाँ पर निवास करनेका क्या फल है ,काशी मे मृत्यु का क्या फल है  तथा  काशी मे जो मनुष्य नही  रहता उसको भी काशी मे रहने का फल कैसे प्राप्त हो इस बारे मे हमारे धर्मशास्त्रो एवँ धर्मग्रंथो  मे जो लिखा है उसको विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे ।

‌ एक बार की बात है कि अगस्त जी  भगवान कार्तिकेय जी से मिलने श्रीशैल स्थित लोहित नामक पर्वत पर गए  वहां पर कार्तिकेय जी ने अगस्त मुनि का आदर सत्कार किया एवं काशी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भुलोक, भुवर्लोक तथा स्वर्लोक अथवा पाताल मे या महर्लोक आदि ऊपर के लोको मे भी मैंने वैसा {काशी जैसा} उत्तम क्षेत्र नही देखा है। हे मुने! मै अकेला ही सर्वत्र घुमता हुँ तब भी काशीक्षेत्र की प्राप्ति के लिये यहाँ तपस्या करता हुँ। किंतु आजतक मेरा मनोरथ सफल  नही हुआ । पुण्य,दान ,जप तप तथा अनेक प्रकार के यज्ञों द्वारा भी काशीक्षेत्र नही मिलता । उसकी प्राप्ति तो केवल काशी विश्वनाथ के अनुग्रह से होती है, काशीपुरी मे निवास का सौभाग्य केवल श्रीमहादेव के कृपा से ही सम्भव है । मनुष्य धर्म के कार्यों को कर के तो स्वर्ग तो आसानी से प्राप्त कर लेगा परंतु काशीपुरी में रहने का सौभाग्य उससे भी दुर्लभ है ।हे मुने! मैं तो काशी से आने वाली वायु  का भी स्पर्श चाहता हुँ तुम तो काशी में रहकर आये हो । जो जितेंद्रिय होकर तीन रात भी काशी में रहकर आये हो उनकी चरणधुलि का स्पर्श सभी को पवित्रकर देता है ।  आप तो वहाँ के निवासी थे  , आप के लिये कहना ही क्या है ।

ऐसा कहकर कार्तिकेय जी ने अगस्त मुनि के समस्त अंगों का स्पर्श किया और ऐसा करके उन्होने अमृत के सरोवर मे स्नान का सुख पाया। उसके बाद जय विश्वनाथ एसा कहकर शंकरजी का ध्यान किय।उसके बाद काशी मे निवास कि विधि के बारे मे बताया तब श्री अगस्त मुनि ने कार्तिकेय जी से काशी के उत्पत्ति एवं महात्म्य के बारे में जानने की विस्तृत इच्छा  व्यक्त की तब कार्तिकेय जी ने कहा कि काशी के महात्म्य को बताने का समर्थ्य तो सहस्त्र मुख वाले शेषनाग को भी नही है फिर मै  6 मुखों से किस प्रकार से वर्णन करुंगा।

परंतु जिस प्रकार आप मुझसे पूछ रहे हैं इसी प्रकार एक बार माता पार्वती ने भी  पिता श्री महादेव जी से भी  प्रश्न किया था तब जो महादेव जी ने माता पार्वती जी से कहा था वह मैं आपको बताता हूं। महादेव जी बोले जब पूरे संसार में महाप्रलय आ गया समस्त चराचर प्राणी नष्ट हो गये थे । सर्वत्र अंधकार व्याप्त था सुर्य, चंद्र,ग्रह, नक्षत्र,दिन,रात आदि कुछ भी  नही था । केवल मै{ब्रह्म} ही था तब मैं सृष्टि करने की इच्छा से तुम्हारी (पार्वती) उत्पत्ति की   एवं तुम्हारे साथ रहने की इच्छा से 5 कोस परिमाण का काशी क्षेत्र बनाया  प्रलय काल में बनाने की वजह से उसका विनाश प्रलय में भी नहीं होगा ऐसा वरदान दिया और इस क्षेत्र को कभी भी शिव एवं पार्वती नहीं त्यागेंगे इसीलिए इसे अविमुक्त नाम दिया भगवान शिव को यह आनंद प्रदान करने वाला क्षेत्र था इसीलिए इसका नाम आनंदवन रखा  उसी समय भगवान शिव ने अपने बाएं अंग से भगवान विष्णु को उत्पन्न किया  उनका अंग बड़ा सुशोभित था और वह दिव्य पीताम्बर धारण किये हुए थे जो परमशांत ,सत्वगुणसे पुर्ण समुद्र से भी अधिक गम्भीर और क्षमावान था । वह एक ही सब पुरुषों से उत्तम था , इसीलिए भगवान शिव ने उन्हें पुरुषोत्तम नाम दिया और  बोले की हे अच्युत तुम्हारे शरीर से वेदों का उत्पत्ति होगी  और तुम्हारा नाम विष्णु हो और ऐसा कहते हुए वह काशी नगरी में प्रवेश कर गए भगवान विष्णु तुरंत ही ध्यान में तत्पर हुए और उसी जगह पर अपने चक्र से  एक कुंड का निर्माण किया और अपने पसीने के जल से भर दिया फिर उसी के किनारे घोर तपस्या की  तब शिव जी पार्वती जी के साथ वहां प्रकट हुए और बोले की वर मांगो तब विष्णु जी  बोले देवेश्वर यदि आप मुझपर पसंद है तो आप सदा सर्वदा भवानी सहित यहां  मुझे दर्शन दे तब शिवजी बोलेंगे हे जनार्दन एसा ही होगा । मेरी मणि जटित कुंडल यहां पर गिर गया है इसीलिए इसका नाम मणिकर्णिका होगा । यह मुक्ति का प्रधान क्षेत्र होगा  ब्रहमा से लेकर छोटे से कीट किसी भी जीव कि यहां पर यदि  मृत्यु होगी तो उसको मोक्ष प्राप्त होगा एवम यदि कोई मनुष्य  कितने भी योजन दूर से भी श्रद्धा पूर्वक काशी का नाम भी लेता है तो उसके पाप क्षय होंगें और मृत्यु पर  मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी ऐसा वरदान दिया ।

इस प्रकार मित्रों आज मैंने आप लोगों के समक्ष काशी एवं मणिकर्णिका तीर्थ के उत्पति के बारे में बताने का प्रयास किया हु  आगे काशी के महात्म्य का भी वर्णन करूंगा ।

‌ जय श्री कृष्ण

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