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वास्तु शास्त्र केवल दिशाओं का ही शास्त्र नहीं है बल्कि उस घर में घटने वाली अच्छी-बुरी सभी घटनाओं का कारक है। कभी-कभी घर में कुछ अवांछित घटनाएं हमें चौंका देती हैं कि आखिर हो क्या रहा है।कई बार घर में एक विशेष स्थान से लाल चींटी अथवा काली चींटी बड़ी संख्या में निकल रही हैं और हल्दी, तेल छिड़कने के बाद भी नहीं जा पा रही। घर में अक्सर घूमने वाली बिल्ली घर के किसी विशेष स्थान पर जाकर रोना शुरू कर देती है चाहे वो आंगन हो या छत। अचानक घर में से किसी विशेष स्थान से बदबू आनी शुरू हो जाती है और कई दिनों तक आती रहती है। किसी विशेष स्थान पर रखे हुए गमले में पौधे सूख जाते हैं। अचानक घर के इलेक्ट्रॉनिक्स या इलेक्ट्रिक सामान खराब होने शुरू हो जाते हैं और उसमें भी विशेष स्थान पर रखे हुए सामान जल्दी टूटने लगते हैं। आप अपनी अलमारी या कैश बॉक्स का स्थान बदल देते हैं, लेकिन कुछ समय बाद अनुभव होता है कि वहां धन रखने पर आपके खर्चे बहुत बढ़ गए हैं। घर में बरकत खत्म हो गई है। 

कभी-कभी सोते समय अचानक लगता है कि किसी ने हमारा गला दबा दिया है और हमारा गला सूख गया है। हाथ-पैर बिल्कुल निष्क्रिय हो गए हैं। किसी विशेष आकृति ने हमें बिल्कुल निष्क्रिय कर दिया है। घर में छह महीने से लेकर दो साल तक नवजात शिशु किसी विशेष स्थान पर बैठ जाता है तो तुरंत हट जाता है। ये कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो घर में महसूस होती हैं। लेकिन इसके पीछे कुछ खास कारण हैं और यह है नकारात्मक ऊर्जा जिसे वास्तु की भाषा में जियोपैथिक स्ट्रैस कहा जाता है। यह ज्योपैथिक स्ट्रेस पहले से नहीं होता है। यह क्षेत्र विशेष में अचानक होता है। 

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कैसे बचें इससे

जियोपैथिक स्ट्रेस से बचने का सबसे सस्ता उपाय  है आप तांबे के तार लेकर अथवा तांबे की टीन की प्लेट लेकर उसको गोलाकार आकृति में बांधकर उस विशेष स्थान पर रख दें जहां आपको सब कुछ निगेटिव लग रहा है। यदि आपकी अचानक सोते समय नींद उड़ जाए। डरावने सपने आने शुरू हो जाएं या आपको लगे कि कोई आपका गला दबा रहा है और आप निष्क्रिय हो जाएं तो इस स्थिति में कुछ दिनों के लिए सोने का स्थान बदल देना चाहिए। जिस स्थान पर आपको महसूस हो कि यह नकारात्मक हो चुका है वहां से अपनी उपयोगी वस्तुएं हटा दीजिए ताकि नुकसान की संभावनाएं कम हो जाए। साथ ही यहां तांबे के तारों का गुच्छा या तांबे की टिन-प्लेट लगवा दीजिए अथवा रख दीजिए। यदि विशेष स्थान पर चींटी निकलती हों या अचानक छिपकली आकर के वहां बोलना शुरू करती हो तो उस कमरे को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दीजिए। साथ ही उसमें लाल रंग का बल्ब जलाएं। तांबे की प्लेट इस विशेष स्थान पर रख दीजिए।

कहां तक होता है इसका असर

सवाल उठता है कि जियोपैथिक स्ट्रैस का असर भूतल पर ही होता है या प्रथम, द्वितीय अथवा बहुमंजिला इमारतों भी। दरअसल जियोपैथिक स्ट्रेस एक धारा में चलने वाली तीव्र गति की नकारात्मक ऊर्जा होती है जो 250 मीटर भूमि के नीचे से लेकर 80 से सौ मीटर ऊपर तक जाती है। ऐसा हो सकता है कि भारी निर्माण के कारण यह दाएं-बाएं हो सकती है। लेकिन इसका प्रभाव किसी भी मंजिल पर हो सकता है। ऐसा नहीं कि जियोपैथिक स्ट्रेस हमेशा ही तीव्र गति का होता है। यदि यह ढाई सौ से तीन सौ मीटर गहराई से निकलता है तो ऊपर आते-आते इसका प्रभाव कम हो जाता है और यह इतना हानिकारक नहीं होता है। यदि यह सौ या 150 फुट नीचे से चलता है तो इसका प्रभाव अधिक हानिकारक होता है। ऐसे में जियोपैथिक स्ट्रैस से घबराने की जरुरत नहीं है। छोटे से उपायों से इसके बचा जा सकता है। 

(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं तथा इन्हें अपनाने से अपेक्षित परिणाम मिलेगा। जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

 

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