Hartalika Teez 2019 | When and Why
हरितालिका तीज व्रत की पूरी जानकारी
इस वर्ष हरितालिका तीज को लेकर पंचांगों के भेद से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है, काशी द्वारा निर्मित प्रायः सभी पंचांगों में तृतीया का मान 2 सितंबर को 9:01 बजे तक दिया गया है। लेकिन ऐसा क्यों है ?
हरितालिका तीज व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है तृतीया तिथि को किए जाने के कारण तीज के नाम से जाना जाता है ।
इस व्रत का महत्व आज से नहीं अपितु प्राचीन काल से है जिसे सर्वप्रथम मां पार्वती जी ने विवाह के पूर्व शिवजी की प्राप्ति के लिए किया था इसी कारण इसे कुँवारी लड़कियां इच्छा अनुसार वर को प्राप्त करने के लिए तथा विवाहित स्त्रियां सुहाग की रक्षा के लिए एवं पति सुख की कामना से करती है ।
कब करना चाहिये ?
मुहूर्तमात्र सत्वेपी दिने गौरी व्रतं परे ।
शुद्धाधिकायमत्येवं गणयोग प्रशंसनात् ।। निर्णय सिंधु – माधवीय आपस्तम्ब
भाद्रपद शुक्ला तृतीया को हरितालिका तीज का व्रत होता है परंतु यदि 2 दिन तृतीया हो तो चतुर्थी युक्त तृतीया को अर्थात दूसरे दिन वाली तृतीया को व्रत करना चाहिए ।
माधवीय आपस्तम्ब मैं चतुर्थी युक्त तृतीया का विशेष फल बताया है जो इस प्रकार है –
चतुर्थी संहिता या तु सा तृतीया फलप्रदा ।
अवैधव्यकरा स्त्रीणां पुत्र पौत्र विवर्धिनी ।।
अर्थात – चतुर्थी युक्त सहित तीज व्रत अधिक फल देती है यह स्त्रियों को सौभाग्य और पुत्र आदि को बढ़ाने वाली होती है परंतु जो स्त्रियां मोह वश द्वितीया युक्त तृतीया रहती हैं उसे वैधव्य कि प्राप्ति होती है
निर्णय
इस वर्ष हरितालिका तीज 1 सितंबर को दोपहर में 11:21 AM से 2 सितंबर प्रात काल 9:01 AM तक है इस कारण से हरितालिका तीज को लेकर के भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है परंतु इस भ्रम का निवारण ऊपर वर्णित श्लोक के माध्यम से हमारे ऋषि वासियों ने पहले ही कर दिया जिसके अनुसार 2 सितंबर 2019 को ही हरितालिका तीज का व्रत रहना सभी मनुष्यों के लिए उर्पयुक्त रहेगा ।
इस प्रकार से 2 सितंबर 2019 को व्रत एवं 3 सितम्बर 2019 को व्रत का पारण करना चाहिए
विधि
व्रत करने वाली स्त्री को सूर्य उदय से पूर्व उठकर भगवान शंकर का ध्यान करना चाहिए फिर स्नान आदि से निवृत हो कर शिवजी की पूजा करें और कथा सुने या पढ़े और हो सके तो बालू की शिव पार्वती की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करें तथा दिन भर भगवान शिव पार्वती का ध्यान करते रहना चाहिए ।
इस व्रत के व्रत करने वाली स्त्री को शयन नही करना चाहिए है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन स्त्री को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री इस व्रत को रखने में अपना परम सौभाग्य समझती है.
आवश्यक निर्देश
इस वर्ष इस तीज तथा चतुर्थी एक दिन होने के कारण चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए क्योंकि (भाद्र पद शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन का निषेध रहता है) चंद्र दर्शन करने से कलंक लगने की संभावना रहती है ।
जय श्री कृष्ण
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