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होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च को है। रंग वाली होली 18 मार्च को है। हालांकि कुछ पंचाग के अनुसार उदया तिथि में प्रतिपदा का मान लेते हुए रंगोत्सव 19 मार्च को भी है। महापर्व होली के आठ दिन पूर्व फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक मनाया जाता है।
आठ दिन नहीं होंगे कोई शुभ कार्य
होलाष्टक 10 मार्च से शुरू होकर 17 मार्च तक रहेगा। इस महापर्व से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है। होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होने का कारण भक्त प्रह्लाद और कामदेव से जुड़ा है। कहते हैं कि राजा हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से होलिका दहन तक कई प्रकार की यातनाएं दी थीं। अंत में बहन होलिका के साथ मिलकर फाल्गुन पूर्णिमा को भक्त प्रह्लाद की हत्या करने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका आग में जलकर मर गई। वहीं भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को अपने क्रोध की अग्नि से भस्म कर दिया था। इन वजहों से ही होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त केवल एक घण्टा 10 मिनट
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है। भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दिन में 1:29 से शुरू होकर अगले दिन 12:47 तक रहेगी। इस बीच 17 मार्च को भद्रा दोपहर 1:29 बजे से शुरू होकर रात्रि 1:12 तक रहेगा। वहीं भद्रा पूंछकाल रात्रि 09:06 से रात्रि 10:16 तक एवं भद्रा मुखकाल रात्रि 10 :16 से रात्रि 12 :13 तक रहेगा। धर्मसिन्धु ग्रन्थ मान्यता अनुसार भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका दहन भद्रा पूंछकाल में रात्रि 09:06 से रात्रि 10:16 के मध्य या भद्रा समाप्ति रात्रि 01:13 के बाद किया जा सकता है।
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