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Mahashivratri 2022: महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर कान्हा की नगरी शिवमय हो जाती है तथा समूचा ब्रजमण्डल भोलेनाथ के जयकारों से गूंजता रहता है। ब्रजमण्डल में यह पर्व एक मार्च को मनाया जा रहा है। गंगाजल लेकर भोलेनाथ को अर्पित करने के लिए कांवरियों का आगमन तेज हो गया है। भारत विख्यात द्वारकाधीश मन्दिर मे वसंत पंचमी से मनाई जानेवाली होली महाशिवरात्रि से और तेज हो जाती है तथा ग्वालबाल रसिया गायन करते हैं- होली खेल रहे शिव शंकर, भोला पार्वती के संग।

भगवान भोलेनाथ वैसे तो यहां के कण कण में विराजमान हैं किंतु भक्तों को दर्शन देने के लिए वे यहां पर वेश बदल कर भी आए थे। यहां के दर्जनों शिव मन्दिर उनकी ब्रजवासियों पर कृपा के गवाह हैं। ब्रजमंडल के चार कोनों में कोतवाल बनकर ब्रज की रक्षा करनेवाले भगवान भोलेनाथ ने गोपी बनकर वृन्दावन का महारास देखा था। इसका जिक्र विभन्नि धार्मिक ग्रन्थों में किया गया है। इन धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार वृन्दावन का गोपेश्वर महादेव मन्दिर इस बात का गवाह है कि भगवान भेालेनाथ ने वृन्दावन में गोपी रूप धारण किया था। 

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ब्रज की विभूति एवं रामानन्द आश्रम गोवर्धन के महंन्त शंकरलाल चतुर्वेदी के अनुसार भोलेनाथ जब कान्हा से मिलने वृन्दावन आए तो उस समय श्यामसुन्दर महारास में व्यस्त थे। भोलेनाथ को गोपियों ने महारास में अन्दर जाने से रोक दिया और कहा कि चे अन्दर यदि जाना चाहते हैं तो उन्हें गोपी रूप धारण करना पड़ेगा। भोलेनाथ जब गोपियों की इस शर्त पर तैयार हो गए तो गोपियों ने उन्हें गोपी रूप धारण कराया था किंतु जब वे अन्दर पहुंचे तो श्यामसुन्दर ने उन्हें पहचान लिया था। ब्रजमण्डल के चार कोनो भूतेश्वर, गोपेश्वर, चकलेश्वर और कामेश्वर पर विराजमान भोलेनाथ कान्हा से मिलने के लिए नन्दगांव भी आए थे इस बात का गवाह नन्दगाव का आशेश्वर महादेव मन्दिर है। चतुर्वेदी ने बताया कि कान्हा के जन्म के बाद जब उनसे मिलने के लिए भगवान भोलेनाथ साधुवेश में आए और मां यशोदा से लाला को देखने का अनुरोध किया तो यशोदा मां ने उनके स्वरूप को देखकर इसलिए मना कर दिया था कि कहीं उन्हें देखकर कान्हा डर न जाय। कान्हा से मिलने की इजाजत न मिलने पर नन्दगांव में जहां आशेश्वर महादेव का मन्दिर है वहीं धूनी रमा कर भोलेनाथ बैठ गये थे। उन्होंने बताया कि इधर भोलेनाथ के जाने के बाद कान्हा इतना अधिक रोये कि मां यशोदा को लगा कि साधुवेशधारी ने कोई टोटका कर दिया है । इसके बाद जब भोलेनाथ को कान्हा के दर्शन करने की इजाजत दे दी गई तो वे शांत हो गए। इसी घटना का गवाह नन्दगांव का आशेश्वर महादेव मन्दिर है। ब्रज का रंगेश्वर महादेव भी भगवान भोलेनाथ की कल्याणकारी भावना का प्रतीक बन गया है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राच्ट्रीय उपाध्यक्ष नवीन नागर के अनुसार कंस के बध के बाद उसे मारने का श्रेय लेने पर कृष्ण और बलराम में द्वापर में विवाद हुआ था। जहां कृष्ण कह रहे थे कि उन्होंने कंस को मारा है तो बलराम कह रहे थे कि उन्होंने मारा है। जिस समय दोनो भाइयों में विवाद बढ़ा था तो भोलेनाथ प्रकट हुए थे और दोनो भाइयों से कहा था कि वे व्यर्थ ही विवाद कर रहे है।। वास्तविकता यह है कि कंस को छलिया होने के कारण जहां कृष्ण ने छल करके मारा है वहीं बलशाली होने यानी बलिया होने के कारण कंस को बलराम ने मारा है। इसके बाद दोनो भाइयों के बीच का विवाद समाप्त हो गया था। शहर के बीचोबीच स्थित यह मन्दिर अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। कहा तो यह जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन ब्रज के किसी शिव मन्दिर के दर्शन कर लेता है भगवान भोलेनाथ का उसे विशेष आशीर्वाद मिल जाता है।

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