तृतीयं चन्द्रघण्टेति


नवरात्र पूजा के क्रम में हम नवरात्र पूजा का विश्लेशण कर रहे है जिसमे आज तीसरा दिन है और आज माँ चंद्रघंटा की पूजा करने का विधान है –
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि चंद्र घंटा देवी की उत्पत्ति कैसे हुई और इनको क्या अर्पित करना चाहिए तभी हम इनको प्रसन्न कर सकते है ।
चंद्रघंटा शब्द का अर्थ है चंद्र के जैसे चमकने वाली और इनके सिर पर घंटे के आकार का चंद्र विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है , और तीसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि चंद्र का अर्थ है अमृत/प्रसन्नता घन्टा का अर्थ है भय /अभय अर्थात चंद्रघंटा देवी अपने शत्रु को घंटा की नाद से भयभीत करके अपने भक्तों को अभय प्रदान करती है जिससे उनका जीवन हमेशा अमृतमय और प्रसन्नता से परिपूर्ण रहे । यह तो हमने उनके नाम का शाब्दिक अर्थ जाना अब उनकी उत्पत्ति को जानते हुए क्या अर्पित करना चाहिए ये जानेंगे –
माँ चंद्रघंटा की उत्पति असुरो को का वध करने के लिए हुई और और इन्होंने बारम्बार इस संसार को असुरो से बचाया है और पूरे विश्व को नारीशक्ति का बोध कराया है देवी के इस कथा से हमे यह सीख लेनी चाहिए कि स्त्री ही सम्पूर्ण जगत का आधार है और हमे देवी को आज के दिन अपने सबसे बड़े शत्रु (काम,क्रोध,अहंकार,लोभ,ईर्ष्या,)को समर्पित करके ये निवेदन करना चाहिए कि आप ने जिस प्रकार देवताओं और संसार की रक्षा के लिए असुरो का संहार किया उसी प्रकार अपने इस संतान की रक्षा के लिए मेरे आंतरिक (शरीर केअंदर उपस्थित) शत्रु का नाश करिये ।
यही आज मा चंद्रघंटा को समर्पित करके उनकी आराधना करनी चाहिए ।

नोट-onlinekashipandit.com को इस लेख को लिखने का उदेश्य यह है की आप माँ को किसी मूर्ति कलश या फोटो में न देखे अपितु अपने शरीर में अपने आसपास महसूस करे क्योंकि हम माँ कीस्थापना मूर्ति में तो करते ही है और साथ साथ उर्पयुक्त भाव से अपने मन , बुद्धि , वाणी एवं शरीर के अंदर भी स्थापित करे जिससे कभी भी हमें गलत कार्य न हो

कल के लेख में मा कुष्मांडा की रहस्य को जानने का प्रयास करेंगे

जय माता दी

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