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Sakat Chauth 2023 Vrat Katha and Muhurat, Moonrise timing in Different Places: संतान की सुख-समृद्धि व लंबी आयु के लिए सकट चौथ व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल यह तिथि 10 जनवरी, मंगलवार को है। इस दिन को श्रीगणेश जन्मोत्सव (गणेश चौथ) के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान गणेश के प्रतिरूप चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है। इसे तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। ग्रन्थों के अनुसार इसी तिथि को श्रीगणेश जी का जन्म हुआ था। सकट चौथ के दिन संकट हरण गणपति गणेशजी की पूजा की जाती है। आप भी जान लें सकट चौथ व्रत शुभ मुहूर्त व आपके शहर में चांद के नजर आने की टाइमिंग-

सकट चौथ 10 जनवरी, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय समय, भोग व पूजा विधि

सकट चौथ व्रत शुभ मुहूर्त-

सकट चौथ व्रत तिथि- जनवरी 10, 2023 (मंगलवार)

सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 08:41 पी एम (भारत में)

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 10, 2023 को 12:09 पी एम बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 11, 2023 को 02:31 पी एम बजे

यहां जानें आपके शहर में कब दिखेगा चांद-

कानपुर- 09:21

लखनऊ- 08:56

वाराणसी- 09:08

गाजियाबाद- 09:36

पटना- 09 बजे

रांची- 08:55 

बरेली- 09:28

भागलपुर- 08:51

प्रयागराज- 09:13

मेरठ-09:36

गया- 08:59

मुंबई- 09:40

इंदौर- 09:33

पुणे- 09:35

सकट चौथ व्रत कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

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गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

एक अन्य कथा भी है प्रचलित-

सकट चौथ व्रत कथा

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ”हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।” राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ”मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।” तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ”भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।”

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सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

 

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