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शरद पूर्णिमा का पर्व रविवार को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में खीर रखने से चंद्रमा उसे अमृत से भर देते हैं। खीर को सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है। वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार, इस दिन पूर्णिमा तिथि का मान संपूर्ण दिन और रात में 2.24 बजे तक है।
उत्तराभाद्र नक्षत्र भी शाम पांच बजकर 17 मिनट, पश्चात रेवती नक्षत्र है। ध्रुव योग शाम आठ बजकर 32 मिनट तक और सुस्थित नामक औदायिक योग भी है। अर्धरात्रि में पूर्णिमा तिथि विद्यमान रहने से शरद पूर्णिमा के लिए यह दिन प्रशस्त है। ज्योतिर्विद पंडित राकेश पांडेय के अनुसार, इस ऋतु में सर्वत्र आकाश निर्मेश हो जाता है, शीतल मंद हवा बहने लगती है। इस समय चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है और उसकी चांदनी में अमृत का निवास हो जाता है। इसलिए उसकी किरणों से अमृत्व और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
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ऐसे करें पूजन
ज्योतिषाचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, रात्रिकाल के प्रथम प्रहर में खुले आकाश में भगवान कृष्ण का आह्वान कर उनका षोडशोपचार पूजन करके गाय के दूध में मेवा आदि डालकर खीर बनाएं और उससे भगवान का भोग लगाएं। उस पात्र को किसी जालीदार कपड़े से ढककर खुले आकाश के नीचे रख दें।
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रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत तक भगवान विष्णु का कीर्तन और भजन करें। बाद में भगवान को विश्राम मुद्रा में रखकर स्वयं भी शयन करें। प्रात:काल सूर्योदय के पूर्व उस खीर रूपी प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और अपने इष्टमित्रों को वितरण कर उन्हें भी अमृत रूपी प्रसाद से लाभांवित करें।
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