ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि l तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।

ॐ नमः शिवाय

मेरे प्रिय पाठकगण आज बाबा विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा की अनुकम्पा से काशी की अनसुनी कहानी का दसवां भाग प्रकाशित हो रहा है इस सीरीज के माध्यम से हम काशी खंड में लिखित काशी के रहस्यों का संक्षेप में अध्ययन कर रहे है ।

हमने पूर्व के भागों में पढ़ा कि काशी में तप करने के प्रभाव से राजा दिवोदास को काशी का राज्य स्वयं ब्रह्मा जी सौप कर जाते है और राजा ने समस्त काशी नगरी ही नही अपितु समस्त पृथ्वी से ही देवताओ को अपनी अपनी नगरी में भेज दिया फिर शिव जी ने काशी में वापस आने के लिए चौसठ योगनियों और सूर्य देवता को राजा के पापराशि को जानने के लिए भेजा परन्तु चौसठ योगिनी और सूर्य देवता राजा के पाप को नही जान पाए ,चौसठ योगिनी और सूर्यदेब अपने बारह स्वरूप से काशी में ही स्थापित हो गए आज उसी बारह स्वरूपो में से प्रथम स्वरूप का वर्णन है जिसका नाम है लोलार्क इनका नाम एव महत्व की चर्चा भी आज हम इसी भाग में करेंगे ।


स्कंद जी जब काशीखंड में सूर्यदेब की बारहो स्वरूप का वर्णन किया तो अगस्त जी ने उनकी महात्म्य के विषय मे जिज्ञासा व्यक्त की तब स्कंद जी ने उनके प्रथम स्वरूप लोलार्क के नाम का वर्णन करते हुए कहा कि अर्क का अर्थ होता है भगवान सूर्य लोल का अर्थ है चंचलता जब भगवान शिव ने सूर्यदेव को काशी जाने का आदेश दिया तो सूर्यदेव काशी के दर्शन के लिए चंचल हो उठे इसलिए काशी में उनका नाम लोलार्क के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
इनका स्थान काशी के दक्षिण भाग में असि संगम के पास स्थित है यह सदा काशी वासियों के योगक्षेम की सिद्धि करते रहते है । मार्गशीर्ष मास की षष्ठी या सप्तमी तिथि पर इनकी वार्षिक यात्रा करके मनुष्य समस्त पापो से मुक्त हो जाता है , जो मनुष्य रविवार के दिन लोलार्क कुंड में स्नान करके लोलार्क का दर्शन करे और उनका चरणामृत पिये तो उसे कभी फोड़ा फुंसी ,दाद खाज खुजली जैसी का प्रकोप नही झेलना पड़ता । जो श्रेष्ठ मनुष्य इस महात्म्य को पढ़ता है और सुनता है उसके दुख यथा शीघ्र समाप्त हो जाते है ।
इस प्रकार आप लोग के समक्ष आज लोलार्क जी के महात्म्य का वर्णन किया आगे उत्तरार्क का महात्म्य और उनके रहस्य को जानेंगे ।
प्रणाम

 

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