|| ॐ ||
विना स्नानेन गंगाया नृणां जन्मनिरथर्कम् ।।
उपायांतरमस्त्यन्यद्येन स्नानफलं लभेत्
ॐ नमः शिवाय
आज बाबा विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा की कृपा से काशी की अनसुनी कहानी का आठवां भाग लेकर उपस्थित हु पूर्व के भागों में हमने काशी , मणिकर्णिका , दण्डपाणि और ज्ञानवापी की उत्पत्ति के साथ उनके महात्म्य का भी अध्ययन किया जिसका दर्शन ही नहीं स्मरण भी मनुष्यो के पाप का नाश करने वाला है इसी क्रम में आज आगे के कथाओ का अध्ययन एवं मनन करेंगे ।
अगस्त जी बोले – भगवन काशी तो समस्त प्रकार से ही मोक्ष को देने वाली है और धर्म का आचरण करने वाले को ही काशी की प्राप्ती होती है , यह बताइये । मैं तो ऐसा मानता हूँ कि सदाचार के बिना किसी का भी मनोरथ सिद्ध नही हो सकता । सदाचार से ही आयु बढ़ती है , सदाचार से ही पापों का नाश होता है इसलिए आप पहले सदाचार का ही वर्णन करिये ।
कार्तिकेय जी ने सभी वर्णों ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र सभी के अलग अलग अचार विचार का वर्णन किया फिर ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम के धर्मों का भी वर्णन किया फिर षोडश संस्कार का भी वर्णन किया ,इन सभी का वर्णन करते हुए उन्होंने एक कथा सुनाई एकबार राजा रिपुञ्जय काशी में तपस्या कर रहे थे तो उनके ऊपर प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने दर्शन दिए और कहा -हे महामते ! तुम समुद्र , पर्वत और वनों सहित पूरी पृथ्वी का पालन करो । नागराज वासुकि तुम्हे पत्नी बनाने केलिए नागकन्या अनंगमोहिनी को देंगे । देवता भी प्रतिक्षण तुम्हारे प्रजापालन से संतुष्ट होकर तुम्हें रत्न और पुष्प प्रदान करते रहेंगे तुम्हारा नाम दिवोदास होगा । एवं मेरे प्रभाव से तुम्हे दिव्य सामर्थ्य की प्राप्ति होगी ।
ब्रह्मा जी की बात सुनकर राजाओ में श्रेष्ठ रिपुञ्जय ने उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की और इस प्रकार कहा – पितामह ! मनुष्यो से भरें इस पृथ्वी पर क्या दूसरे राजालोग नही है । मुझे ही ऐसी आज्ञा क्यो मिल रही ।
ब्रह्मा जी ने कहा – राजन ! तुम राज करोगे तो इंद्रदेव इस पृथ्वी पर वर्षा करेंगे । दूसरा कोई पापनिष्ठ राजा राज्य करेगा तो देव वर्षा नही करेंगे ।
राजा बोले- आप स्वयम तीनो लोको की रक्षा करने में समर्थ है , तो भी आप मुझे जो यह यश दे रहे , यह आपका मेरे ऊपर प्रसाद है लेकिन मेरी आपसे प्रार्थना अगर आप स्वीकार कर लेंगे तो मैं अकंटक राज्य कर सकता हु
ब्रह्मा जी बोले – तुम्हारे मन मे जो है उसे कहो
राजा बोले – पितामह यदि में पृथ्वी का राज्य कर तो देवलोक के देवता अपने लोक में ही रहे पृथ्वी पर ना आये । मेरे राज्य में मैं अकंटक राज्य कर पाऊंगा
ब्रह्मा जी तथास्तु कह कर चले गए तब राजा ने अपने राज्य में डंका बजवा कर घोषणा करवा दी कि देवता लोग अपने अपने लोक में चले जाय पृथ्वी पर मेरे राज्य शासनकाल में देवता स्वर्ग में सुखी रहे और मनुष्य पृथ्वी परस्वस्थ रहे ।
सभी देवता के चले जाने पर राज दिवोदास ने धर्मपूर्वक राज्य शुरू किया । अगस्त आदि देवताओं ने दिवोदास के राज्य शासन को असफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किए धर्मात्मा राजा दिवोदास ने अपने तपोबल से उन सब विध्नों पर विजय प्राप्त किये
आगे कैसे देवताओ ने वापस काशी में प्रवेश किया इस पर चर्चा होगी
जय श्री कृष्ण
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