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वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के बीच काशी में विश्वनाथ मंदिर के नंदी चर्चा में हैं। शिव और नंदी का एक अनूठा संबंध है। शिवालयों में आपने नंदी यानी नंदीश्वर की मूर्ति जरूर देखी होगी। कहते हैं कि जहां शिव हैं वहां नंदी हैं। नंदी को शिवजी का द्वारपाल और वाहन भी माना जाता है। इसके पीछे एक अनोखी पौराणिक कथा है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में शिलाद नाम के ऋषि हुआ करते थे। उन्होंने एक विद्वान पुत्र की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद शिलाद ऋषि को नंदी पुत्र के रूप में मिले। 

एक दिन मित्र और वरुण नाम के दो ऋषि उनके आश्रम में पहुंचे। शिलाद ऋषि और नंदी ने मिलकर दोनों की अच्छे से आवभगत की। उनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब दोनों जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को लंबी उम्र का वरदान दिया, लेकिन नंदी के लिए कोई कामना नहीं की।

शिलाद ऋषि ने इसका कारण पूछा। तब मित्र और वरुण ऋषि ने बताया कि नंदी की उम्र कम है। वह अल्पायु हैं। इससे शिलाद ऋषि को चिंता सता गई। जब नंदी को इस बात का पता चला तो उन्हें भी दुख हुआ। इसके बाद नंदी ने शिव की कठोर तपस्या शुरू कर दी। 

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शिवजी नंदी की तपस्या से खुश हुए और उनके सामने प्रकट होकर कोई वरदान मांगने के लिए कहा। तब नंदी ने कहा कि वह हमेशा शिव की छत्रछाया में रहने चाहते हैं। शिव ने तथास्तु कहा और नंदी को अपने गणों में स्थान दिया। इस तरह नंदी शिव के वाहन बन गए। शिव जब हिमालय में तपस्या करते हैं, तब नंदी उनके द्वारपाल होते हैं।

नंदी के कान में क्यों कहते हैं लोग?

अक्सर लोग शिवालय में स्थित नंदी बैल के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि शिवजी तपस्या में लीन हैं और नंदी उनके द्वारपाल हैं। इसलिए लोग अपनी मनोकामनाएं नंदी के कान में कहते हैं। वह जाकर शिव को बताते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से लोगों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।

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