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इस वर्ष हरिशयनी (देवशयनी) एकादशी व्रत का मान सबके लिए 10 जुलाई रविवार को है। इसका पारण 11 जुलाई सोमवार को प्रातः 05:15 बजे के बाद जौ से किया जाएगा। भवष्यिोत्तर पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी को ही हरिशयनी या देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं कहीं इसे पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन से चतुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। इस दिन जगत के पालनहार श्री विष्णु का विधिवत पूजन कर उन्हें शयन कराया जाता है। भगवान के शयन अवधि (चतुर्मास) में विवाह,उपनयन,गृहप्रवेश आदि मांगलिक कार्य बन्द हो जाते हैं। उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षवद्यिा शक्षिण प्रशक्षिण सेवा संस्थान-वेद वद्यिालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि पुराणों का ऐसा भी मत है कि भगवान वष्णिु इस दिन से चार माह पर्यन्त पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को देवशयनी तथा कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी को देव प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी कहते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी के विशेष महात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

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देवशयनी एकादशी पूजा- विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • भगवान की आरती करें। 
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। 
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। 
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें। 

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