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सनातन धर्म मे पितृ पक्ष का महीना पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए जाना जाता है, जिसमे पितरों को याद किया जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होने वाले पितृ पक्ष में पितरों को श्राद्ध और पिंडदान करने से परिवार में सुख समृद्वि और शांति आती है। परिवार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है। हिन्दू शास्त्रों, पुराणों और संहिताओं में बताया गया है कि जब तक पितृ ऋण से मुक्ति नही मिलती है, तब तक ईश्वर भी प्रसन्न नही होते हैं।

वैदिक शास्त्रों के अनुसार सनातन धर्म मे पांच यज्ञों के महत्व को बताया गया है। जिसमे ब्रम्हयज्ञ, पितृ यज्ञ, देव यज्ञ, भूत यज्ञ और मनुष्य यज्ञ की चर्चाएं मिलती हैं। शृंग्वेरपुरधाम पीठाधीश्वर महन्त रामप्रसाद दास शास्त्री बताते हैं कि इस वर्ष पितृ पक्ष का प्रारम्भ 10 सितंबर भाद्रपद पूर्णिमा दिन शनिवार से हो रहा है, जो अश्विन माह के अमावस्या तक पंद्रह दिनों तक है। तीन प्रकार के ऋणों में पितृ ऋण को उतारने का सबसे सरलतम उपाय भाद्रपद में पिंडदान करना है।

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श्राद्ध विधि

  • किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। 
  • श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। 
  • इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
  • यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।
  • श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

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