|| द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ||
कल के लेख में हम सबने जाना की नवरात्र की पूजा क्यों होती है अगर करना है तो देवी की क्यों किसी देवता की क्यों नहीं और इसी क्रम में हमने शैलपुत्री के स्वरूप और उनको क्या अर्पित करना चाहिए यह सब जाना आज हम देवी के द्वितीय स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी के स्वरूप का अध्ययन करेंगे |
ब्रह्मचारिणी शब्द का शाब्दिक अर्थ है तप करने वाली या ब्रह्मचर्य का आचरण करने वाली
हम सब ने पहले ही अध्ययन किया था की शैल पुत्री का अर्थ है हिमालय की पुत्री तो जब माँ की अवस्था बढ़ी हुई तो वो शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में जाकर ब्रह्मचर्य रूप को धारण किया और घोर तपस्या की और उस तपस्या के द्वारा शिव जी को प्रसन्न किया और उन्हें पति रूप में प्राप्त किया | इस कथा को सुनाने का यह अर्थ नहीं की आप सब भी ऐसे ही तपस्या करे लेकिन माँ ने ऐसा करके समाज को सन्देश दिया है की किसी भी वास्तु की प्राप्ति के लिए सयम और धैर्य का होना आवश्यक है यदि हम बिना संयम और धैर्य के कोई कार्य करेंगे तो वः कार्य पूरा नहीं हो पायेगा |
इसलिए द्वितीय दिन में हमे ब्रह्मचारिणी के रूप पूजा करते हुए अपने इन्द्रियों( पांच ज्ञानेन्द्रिय . पांच कर्मेन्द्रिय और एक मन ) को समर्पित करना चाहिए जिसके द्वारा हमें माता से प्रार्थना करना चाहिए की हमारी इन्द्रिया कभी भी अनुचित कार्य में न लगे और हम जीवन में कभी भी कोई लक्ष्य के बारे में सोचे तो उसे पूरा करे |
चंद्रघंटा जी का रहस्य अगली लेख में पढ़ेंगे
नोट-onlinekashipandit.com को इस लेख को लिखने का उदेश्य यह है की आप माँ को किसी मूर्ति कलश या फोटो में न देखे अपितु अपने शरीर में अपने आसपास महसूस करे क्योंकि हम माँ कीस्थापना मूर्ति में तो करते ही है और साथ साथ उर्पयुक्त भाव से अपने मन , बुद्धि , वाणी एवं शरीर के अंदर भी स्थापित करे जिससे कभी भी हमें गलत कार्य न हो
जय माता दी
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