सीतांशु शोभित किरीट विराजमानं

बालेक्षणातल विशोषित पंचबाणं

नागाधिपा रचित बासुर कर्ण पूरं

वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथं ||


काशी की अनसुनी कहानी के समस्त पाठकगण को सादर प्रणाम जैसा की हम सबने पूर्व में अध्ययनके माध्यम से जाना है , भगवान भूतभावन बाबा भोलेनाथ जी आज काशी में विजययात्रा के द्वारा काशी में प्रवेश कर रहे है ,आइये  हम सब भी उसी यात्रा में काशी विश्वनाथ के साथ काशी यात्रा में शामिल हो जाये ,और हम इस कथा को पढ़े ही नहीं अपने मन के नयनो से देखे की काशी विश्वनाथ ने काशी में प्रवेश करके सर्वप्रथम क्या क्या किया |

कार्तिकेय जी कहते है – भगवान शिव ने काशीपूरी को देखने के पश्चात सबसे पहले एक गुफा के सामने गए और उस गुफा में बैठे हुए जैगीषव्य ऋषि को  दर्शन दिया |

जिस दिन भगवान शिव काशी छोड़कर गए उसी दिन से जैगीषव्य मुनि ने यह संकल्प लिया की ‘ जब मै पुनः यहाँ भगवान शिव का दर्शन करूँगा तभी एक बून्द जल भी मुंह में डालूंगा |’

किसी अद्भुत धारणाशक्ति के कारण या भगवान शिव के कृपा से अन्न – जल त्याग देने पर भी जैगीषव्य मुनि वहां जीवित रहे |इस बात को केवल भगवान शंकर के आलावा कोई नहीं जनता था , दूसरा कोई नहीं |इसीलिए भगवान विश्वनाथ सबसे पहले वही गए और नंदी को बोले – यहाँ बड़ी मनोहर गुफा है , तुम शीघ्र इसके भीतर जाओ और इसके भीतर जैगीषव्य मुनि रहते है , जिन्होंने मेरे दर्शन के लिए कठोरव्रत धारण किया है | उनको गुफा के बाहर ले आओ |जब से मै काशी के बाहर था तब से लेकर आजतक उन्होंने आहार त्याग कर बड़ा भारी नियम पालन किया है | यह कमल ले लो , यह अमृत के सामान पोषण करने वाला है , इससे उनके अंगो का स्पर्श करा दो | तब नंदी ने विश्वनाथ से कमल लेकर गुफा के भीतर गए और वहां तपस्या में लीन जैगीषव्य ऋषि को देखकर उन्होंने उनके शरीर से कमल का स्पर्श करा दिया | उस कमल का स्पर्श होते ही जैगीषव्य ऋषि उल्लसित हो उठे ,और तुरंत गुफा के बाहर आये और देवाधिदेव महादेव के चरणों के आगे साष्टांग प्रणाम किया और अतिशय भक्तिपूर्वक उनकी स्तुति प्रारम्भ की –

।। ।। जैगीषव्य उवाच ।। ।।

नमः शिवाय शांताय सर्वज्ञाय शुभात्मने।।

जगदानंदकंदाय परमानंदहेतवे ।।

अरूपाय सरूपाय नानारूपधराय च ।।

विरूपाक्षाय विधये विधिविष्णुस्तुताय च ।।

स्थावराय नमस्तुभ्यं जंगमाय नमोस्तुते ।।

सर्वात्मने नमस्तुभ्यं नमस्ते परमात्मने ।।

नमस्त्रैलोक्यकाम्याय कामांगदहनाय च ।।

नमो शेषविशेषाय नमः शेषांगदाय ते ।।

श्रीकंठाय नमस्तुभ्यं विषकंठाय ते नमः ।।

वैकुंठवंद्यपादाय नमोऽकुंठितशक्तये ।।

नमः शक्त्यर्धदेहाय विदेहाय सुदेहिने ।।

सकृत्प्रणाममात्रेण देहिदेहनिवारिणे।।

कालाय कालकालाय कालकूट विषादिने ।।

व्यालयज्ञोपवीताय व्यालभूषणधारिणे ।।

नमस्ते खंडपरशो नमः खंडें दुधारिणे ।।

खंडिताशेष दुःखाय खड्गखेटकधारिणे ।।

गीर्वाणगीतनाथाय गंगाकल्लोलमालिने ।।

गौरीशाय गिरीशाय गिरिशाय गुहारणे ।।

चंद्रार्धशुद्धभूषाय चंद्रसूर्याग्निचक्षुषे ।।

नमस्ते चर्मवसन नमो दिग्वसनायते ।।

जगदीशाय जीर्णाय जराजन्महराय ते ।।

जीवायते नमस्तुभ्यं जंजपूकादिहारिणे ।।

नमो डमरुहस्ताय धनुर्हस्ताय ते नमः ।।

त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं जगन्नेत्राय ते नमः ।।

त्रिशूलव्यग्रहस्ताय नमस्त्रिपथगाधर ।।

त्रिविष्टपाधिनाथाय त्रिवेदीपठिताय च ।।

त्रयीमयाय तुष्टाय भक्ततुष्टिप्रदाय च ।।

दीक्षिताय नमस्तुभ्यं देवदेवाय ते नमः ।।

दारिताशेषपापाय नमस्ते दीर्घदर्शिने ।।

दूराय दुरवाप्याय दोषनिर्दलनाय च ।।

दोषाकर कलाधार त्यक्तदोषागमाय च ।।

नमो धूर्जटये तुभ्यं धत्तूरकुसुमप्रिय ।।

नमो धीराय धर्माय धर्मपालाय ते नमः ।।

नीलग्रीव नमस्तुभ्यं नमस्ते नीललोहित ।।

नाममात्रस्मृतिकृतां त्रैलोक्यैश्वर्यपूरक ।।

नमः प्रमथनाथाय पिनाकोद्यतपाणये ।।

पशुपाशविमोक्षाय पशूनां पतये नमः ।।

नामोच्चारणमात्रेण महापातकहारिणे ।।

परात्पराय पाराय परापरपराय च ।।

नमोऽपारचरित्राय सुपवित्रकथाय च ।।

वामदेवाय वामार्धधारिणे वृषगामिने ।।

नमो भर्गाय भीमाय नतभीतिहराय च ।।

भवाय भवनाशाय भूतानांपतये नमः ।।

महादेव नमस्तुभ्यं महेश महसांपते ।।

नमो मृडानीपतये नमो मृत्युंजयाय ते ।।

यज्ञारये नमस्तुभ्यं यक्षराजप्रियाय च ।।

यायजूकाय यज्ञाय यज्ञानां फलदायिने ।।

रुद्राय रुद्रपतये कद्रुद्राय रमाय च ।।

शूलिने शाश्वतेशाय श्मशानावनिचारिणे ।।

शिवाप्रियाय शर्वाय सर्वज्ञाय नमोस्तु ते ।।

हराय क्षांतिरूपाय क्षेत्रज्ञाय क्षमाकर ।।

क्षमाय क्षितिहर्त्रे च क्षीरगौराय ते नमः ।।

अंधकारे नमस्तुभ्यमाद्यंतरहिताय च ।।

इडाधाराय ईशाय उपेद्रेंद्रस्तुताय च ।।

उमाकांताय उग्राय नमस्ते ऊर्ध्वरेतसे ।।

एकरूपाय चैकाय महदैश्वर्यरूपिणे ।।

अनंतकारिणे तुभ्यमंबिकापतये नमः ।।

त्वमोंकारो वषट्कारो भूर्भुवःस्वस्त्वमेव हि ।।

दृश्यादृश्य यदत्रास्ति तत्सर्वं त्वमु माधव ।।

स्तुतिं कर्तुं न जानामि स्तुतिकर्ता त्वमेव हि ।।

वाच्यस्त्वं वाचकस्त्वं हि वाक्च त्वं प्रणतोस्मि ते ।।

नान्यं वेद्मि महादेव नान्यं स्तौमि महेश्वर ।।

नान्यं नमामि गौरीश नान्याख्यामाददे शिव ।।

मूकोन्यनामग्रहणे बधिरोन्यकथाश्रुतौ ।।

पंगुरन्याभिगमनेऽस्म्यंधोऽन्यपरिवीक्षणे।।

एक एव भवानीश एककर्ता त्वमेव हि।।

पाता हर्ता त्वमेवैको नानात्वं मूढकल्पना ।।

अतस्त्वमेव शरणं भूयोभूयः पुनःपुनः ।।

संसारसागरे मग्नं मामुद्धर महेश्वर ।।

इति स्तुत्वा महेशानं जैगीषव्यो महामुनिः ।।

 

इस प्रकार महेस्वर की स्तुति करके महामुनि जैगीषव्य चुप हो गए |

जैगीषव्य मुनि के द्वारा स्तुति सुनकर चंद्रमौलि भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा – तुम कोई वर मांगो |’

जैगीषव्य  बोले – यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो यही वर दीजिये की मैं आके चरणों से कभी दूर न होऊं और दुसरा वर यह दीजिये की मैंने जो शिवलिंग की स्थापना की है , उसमे सदा आप निवास करे |

महादेव जी बोले -महाभाग जैगीषव्य ! तुम जैसा चाहते हो वैसा ही होगा |इसके अलावा मै तुम्हे दूसरा वर और देता हूँ – मोक्ष के साधनभूत योगशास्त्र मै तुम्हे अर्पण करता हूँ | तुम सब योगियों के बीच योगाचार्य के रूप में प्रसिद्ध होओगे | तुम सदा मेरे चरणों के समीप निवास करोगे और वहीँ तुम्हे मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति होगी | काशी में जिस शिवलिंग की स्थापना तुमने की वो जैगीषव्येश्वर नामक शिवलिंग परम दुर्लभ होगा | तीन वर्षों तक उसका दर्शन करके मनुष्य योग की प्राप्ति कर सकता है | इसमें संशय नहीं है | जिस गुफा में तुमने तपस्या की उसमे योगाभ्यास करने वाला मनुष्य छह महीने मनोवांछित सिद्धि प्राप्त कर सकता है | तुमने जिस मंत्रो से मेरे स्तुति की है यह सब प्रकार के सिध्दिको प्रदान करने वाला है | कोई व्यक्ति अगर इसका जप प्रतिदिन करे तो मनुष्य को कोई भी चीज दुर्लभ कभी नहीं होगी | अतः उत्तम साधक को  सर्वदा प्रयत्न करके इस स्तोत्र का जप करना चाहिए |

आज भी जैगीषव्येश्वर महादेव काशी में विराजमान है लेकिन जैसा शिव ने कहाँ की वो दुर्लभ है, क्या आप जानते है वर्तमान काशी में कहाँ स्थिति है जैगीषव्येश्वर महादेव ?

इस प्रकार जैगीषव्य को वर देकर महादेव जी ने उस क्षेत्र में निवास करने वाले ब्राह्मणो को देखा और अनेक वर दिए इस का अध्ययन हम आगे के क्रम में पढ़ेंगे |

हर हर बम बम

Get Free Astrological Consultation

[caldera_form id=”CF5d66376d5b503″]