गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरुर्सक्षात् परब्रह्म: तस्मै श्री गुरवे नम: ॥
आज पुरा विश्व कोरोना वायरस नामक महामारी से ग्रसित है और इतना भयाक्रांत है कि इस भय के कारण अपने अपने घर मे कैद हो चुका है एवं विश्व आर्थिक मंडी की ओर अग्रसर है ऐसा क्यों हुआ इस प्रश्न का उत्तर ढुंढते है तो पता लगता है कि चीन मे चमगादड के शरीर मे से यह वायरस मनुष्य के शरीर मे प्रवेश किया और उससे आज पुरे विश्व में फैल गया है ।
इसके संक्रमण से बचने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने पूरे देश में 21 दिन यानी 14 अप्रैल तक लॉकडाउन का प्रावधान किया है। लेकिन इससे बचाव के लिए अब तक कोई वैक्सीन या दवा तैयार नहीं हो सकी है। इसका असर कब खत्म होगा, यह भी तय नहीं है ।
श्री काशी पंडित ज्योतिष उपासना केंद्र के द्वारा की गयी गहन अध्यन से जो जानकारी प्राप्त हुई है उसको आपके समक्ष ला कर जनता को जागृत करना www.onlinekashipandit.com का उद्देस्य है ।
ज्योतिष शास्त्रों मे लिखा है -
ग्रहाधिनं जगत्सर्वं ग्रहाधिना नरवरा ।
कालज्ञानं ग्रहाधिनं ग्रहा: कर्मफलप्रदा:॥
सृष्टिरक्षण्संहारा:न सर्वे चाsपि ग्रहानुगा:।
पुर्वकर्मफलानां च सुचका: खेचरा:मता:॥
ज्योतिष रत्नमाला
अर्थ – समस्त चराचर जगत ग्रहों के अधीन है, समय का ज्ञान भी ग्रहों के द्वारा होता है । समस्त प्राणियों के द्वारा किया गया कर्म फल भी ग्रह ही देते है सृष्टि का सृजन, रक्षण और संहार भी ग्रहों के द्वारा ही होता है और इस सबका संबंध पुर्व मे हुए कर्मफल के अनुसार होता है ।
जब उर्पयुक्त बातों से स्पष्ट है कि समस्त होने वाली घटनाओं का कारण ग्रह और इस सबका संबंध पुर्व मे हुए कर्मफल के अनुसार होता है तो विश्व मे होने वाले कोरोना वायरस का कारण भी ज्योतिष के ग्रंथो मे व्यक्त हो तो क्यों ना हम इस कोरोना नामक महामारी का प्रारम्भ और निदान ज्योतिष के द्वारा अध्ययन करें ।
प्रारम्भ
यह महामारी क्यों उत्पन्न हुई इसका पता लगाने के लिये हमें ज्योतिष के संहिता ग्रंथो मे प्रसिद्ध ग्रंथ बृहत्संहिता नामक ग्रंथ मे इसका उल्लेख मिला , अब प्रश्न यह उत्पन्न हुआ कि इसी ग्रंथ का क्यों अध्य्यन किया गया ? भारतीय ज्योतिष जिसे आज हम वैदिक ज्योतिषके नाम से जानते है मुख्यत: तीन भागों मे विभक्त है - सिद्धांत , संहिता और होरा।
सिद्धांत ज्योतिष में ज्योतिष के ग्रहमंडल, तारामंडल एवं इन सबके स्थिति गति आदि का विवेचन उदयअस्त आदि का विवेचन होता है।
होरा ग्रंथो में पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीवों का प्रसवकाल से लेकर अवसानकाल तक जीवन मे होने वाली समस्त शुभाशुभ पक्षों का विवेचन प्राप्त होता है ।
संहिता ग्रंथो मे इन दोनो से बचे हुए और संसार मे होने वाली समस्त घटनाओं का विवेचन प्राप्त होता है । संहिता ग्रंथ का क्षेत्र भुगर्भ से लेकर अंतरिक्ष तक है , इनके अन्दर होने वाले परिवर्तनों एवं उनके परिणामों का अध्ययन करता है । बृहत्संहिता वाराहमिहिर द्वारा ६ठी शताब्दी संस्कृत में रचित एक विश्वकोश है जिसमें मानव रुचि के विविध विषयों पर लिखा गया है। इसमें खगोलशास्त्र, ग्रहों की गति, ग्रहण, वर्षा, बादल, वास्तुशास्त्र, फसलों की वृद्धि, इत्रनिर्माण, लग्न, पारिवारिक संबन्ध, रत्न, मोती एवं कर्मकांडों का वर्णन है
इसिलिये हमने ज्योतिष के बृहत्संहिता को मूल माना, इस ग्रंथ मे एक श्लोक प्राप्त हुआ –
आषाढपर्वण्युदपानवप्रनदीप्रवाहान् फलमूलवार्त्तान् ।
गांधारकाश्मीरपुलिंदचीनान् हतान् वदेन्मण्डलवर्षमस्मिन् ॥
अर्थ – यदि आषाढ मास (Jun-July) की अमावस्या में सुर्यग्रहण और पुर्णिमा में चंद्रग्रहण हो तो नदीयों के किनारे रहने वाले मनुष्य ,नदी का प्रवाह , फल मूल खाकर समय यापन करने वाले , गंधार( अफगानिस्तान ), काश्मिर ,पुलिंद (इटली) और चीन इनके आसपास विनाश का प्रारम्भ होता है तथा संसार में मण्डलवृष्टि (कहीं कहीं असमय वर्षा, जो की वर्त्तमान में विदित है) होती है ।
तदनुसार सन् 2019 मे आषाढ मास (Jun-July Month) की अमावस्या में सुर्यग्रहण और पुर्णिमा में चंद्रग्रहण क्रमश: 2/7/2019 और 16/7/2019 को हुआ था जिसका फल पुर्वमे दिये गये श्लोक मे एवं वर्तमान मे हो रही घटनाओं मे भी देख सकते है । देखा जाए तो विश्व में, दिसंबर 2019 में पहला संक्रमित केस चीन में सामने आया था, स्वाभाविक है की इसका प्रसार जुलाई (ग्रहण का समय) से नवम्बर के मध्य ही प्रारम्भ हो गया होगा ।
परंतु आज महामारी का प्रारम्भ हुआ तो हम ज्योतिष मे इसको ढुंढने लगे परंतु क्या इसके पुर्व भी कभी ऐसी घटना हुई थी ? इसको देखनेके लिये पुर्व मे भी हुई घटनाको इस पुस्तक (बृहत्संहिता) के नजरिये से देखा गया तो इसकी प्रमाणिकता सामने आयी जो निम्न प्रकार से है –
- स्पेनिश फ्लु– इस महामारी का प्रारम्भ सन् 1918 मे अमेरिका मे प्रारम्भ होते हुए पुरे विश्वमे फैल गया और इस महामारी मे ५ करोड लोगो की मृत्यु हुई थी , इसी घटना के ठीक पहले एक ग्रहण हुआ था जो क्रमश: 14/12/1917 तदनुसार मार्गशीर्ष (Nov-Dec month) कृष्ण अमावस्या को सुर्यग्रहण और 28/12/1917 तदनुसार मार्गशीर्ष (Nov-Dec month) शुक्ल पुर्णिमा को चंद्रग्रहण था जोकि जिसके फल के बारे मे जब इस पुस्तक मे इसप्रकार लिखा हुआ है –
काश्मीरकान् कौशलकान् सुपुंड्रान मृगांश्च हन्यादपरांतकांश्च ।
ये सोमपास्तांश्च निहंति सौम्ये सुवृष्टिकृत क्षेमसुभिक्षकृच्च ॥
अर्थ – यदि मार्गशीर्ष मास की अमावस्या मे सुर्यग्रहण और पुर्णिमा को चन्द्रग्रहण हो तो काश्मीर, पुंड्र मे रहने वाले और वन के जीव जंतु और पश्चिम देशो से प्रारम्भ होकर मनुष्यों का और सभी ओर विनाश होता है । ठीक ऐसा ही उस समय काल मे हुआ था ।
- एशियन फ्लू– इसकी शुरुआत फरवरी 1957 मे हुआ था और इसमे करीब ५० लाख लोगो कि मृत्यु हुई और इस्के भी ठीक पुर्व 17 नवम्बर 1956 और 2 दिसम्बर 1956 को भी ग्रहण था |
सोमग्रहे निवृत्ते पक्षांते यदि भवेत् ग्रहोsर्कस्य ।
तन्नानय: प्रजानां दम्प्त्योर्वैरमन्योन्यम् ॥
अर्थ – यदि चंद्रग्रहण के पश्चात सूर्यग्रहण पडे तो प्रजाओ मे भय और स्त्री पुरुष मे द्वेष और विवाद कि स्थिति उत्पन्न होती है । रोग एवं भय का आगमन होता है ।ठीक ऐसा ही उस समय काल मे हुआ था जोकि सर्वविदित है ।
निष्कर्ष
इससे यह समझ मे आता है कि जो भी घटना हो रही है उसका ग्रहण से सीधा सम्बंध है, तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि एसे ग्रहण तो हमेशा होते है फिर इन ग्रहणो मे ऐसा क्या है जो पुरे विश्व मे इस प्रकार के बिमारी को प्रदान कर रहा है तो इसका उत्तर भी इसी पुस्तक में प्राप्त हुआ –
पश्यन् ग्रस्तं सौम्यौ घृतमधुतैलक्षयाय राज्ञां च ।
भौम: समरविमर्दं शिखिकोपं भयं च ॥
शुक्र: सस्यविमर्दं नानाक्लेशांश्च जनयति धरित्र्याम् ।
रविज: करोत्यवृष्टिं दुर्भिक्षं तस्करभयं च ॥
अर्थ- ग्रहणकालिक सुर्य या चंद्र पर यदि बुध की दृष्टि हो तो राजाओं का नाश होता है । यदि मंगल होता है तो युद्ध आदि भय । यदि शुक्र होतो पृथ्वी पर धान्यों का नाश और अनेक तरह के क्लेशउत्पन्न होते है और यदि शनि होतो अनावृष्टि और दुर्भिक्ष चोरो का भय रहता है ।
अब पुर्व मे हुई घटनाओं की कुंडली का एकबार अवलोकन करते है –
- स्पेनिश फ्लु 1918
28/12/1917
इसमें यहां स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि चंद्र और राहु के ऊपर बुध कि पुर्णदृष्टि है जो की अमंगलकारी एवं विनाशकारि होती है ।
2 – एशियन फ्लु 1957
2/12/1956
इसमें यहां भी स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि सूर्य और राहु के साथ शनि और बुध भी है जो की अमंगलकारी एवं विनाशकारि के साथ साथ दुर्भिक्ष एवं रोगों के आगमन देने वाली होती है ।
3 – कोरोना 2019 –
17 July 2019
इसमे भी यहां स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि चंद्र और केतु के साथ शनि है और इसपर शुक्र की दृष्टी है जिसके बारेमे पुर्व मे ही लिखा है कि दुर्भिक्ष और पुरे विश्व धान्यों का नाश और अनेक तरह के क्लेश उत्पन्न होते है । एसा ही हो रहा है
अब यहां यह बात स्पष्ट है कि इन समस्त घटनाओं के कारण ग्रहण ही नही ग्रहणके समय होने वाले अन्य ग्रहो की दृष्टि भी है
अब तक यह बात स्पष्ट हो चुकि है कि कोरोना कि शुरुआत कैसे हुइ लेकिन अब इस लेख कि मुख्य बात कि ये कैसे समाप्त होगा ।
निदान
उर्पयुक्त प्रमाणों से यह समझ मे आता है कि जब इसका कारण ग्रहण है और उनके ऊपर होने वाले ग्रहो के प्रभाव जब कम होगा तो अवश्य इस वायरस के प्रभाव मे भी कमी आयेगी ।
जुलाई 2019 ग्रहण के पश्चात, 26 /12/2019 को दूसरा ग्रहण था जिसने इस वायरस मे और तेजी ला दी जिसका कारण था ग्रहणकाल मे षड्ग्रहो (6 planets) (सूर्य,चंद्र,बुध,गुरु,शनि,केतु) की युति (merger) परंतु 21/06/2020 को तीसरा ग्रहण होगा जिसमे राजाओं मे मनमुटाव, अत्यधिक वर्षा, दुर्भिक्ष, डर का वातावरण, राज्ययुद्ध की आशंका है परंतु शेष वर्ष शुभ फलदायक होगा, इसलिये यदि हम इस समय तक अपने आप को सुरक्षित कर लिये तो भविष्य में कष्ट नही होगा ।
तीसरे ग्रहण के पहले तक विश्व इसकी निश्चित उपचार (दवा या वैक्सीन) बना कर इसके निदान कि ओर अग्रसर हो जायेगा
परंतु यहां पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि जो पुर्व मे हुए ग्रहण था उसके कारण एक निदान भी प्राप्त होता है –
- सूर्य – आत्मा कारक, चेतना कारक , सामाजिक स्वभाव कारक
- चंद्र- मन कारक, शारिरिक विकास कारक , सामाजिक विकास कारक
- बुध- बुद्धि कारक , सामाजिक गतिशीलता कारक , वैज्ञानिक खोज का कारक
- गुरु-ज्ञान कारक , विवेककारक सामाजिक कल्याण कारक
- शनि-,विनम्रताकारक, दासकारक राजसत्ता और सामाजिक शासन कारक
- केतु-पीडाकारक , दुर्भिक्ष एवं रोग कारक
आप उर्पयुक्त 5 ग्रहों को देखेंगे तो यह समझ मे आयेगा कि ये पांचो ग्रह तो हमारे शरीर के अन्दर ही उपस्थित है और छठा ग्रह केतु उन सभी को प्रभाव में लेकर हमे परेशान कर रहा है और हमारे अंदर भय क्रोध अज्ञानता और दुख को उत्पन्न कर रहा है लेकिन हम इसपर विजय प्राप्त कर सकते है ।
यदि हम 21/06/2020 तक भय, भ्रम, क्रोध, और वासनाओं पर संयम रखते हुए शुद्धता,स्वच्छता और सेवा का भाव रखे तो अवश्यमेव शत प्रतिशत हम इस महामारी से विजय प्राप्त कर लेंगे अन्यथा इसमें और उलझते रहेंगे क्योंकि केतु का मुल उद्देश्य है कि भ्रम और भय कि स्थिति उत्पन्न करना जिसमे आज हम ग्रसित होते जा रहे है और हमें इससे निकलना होगा इससे केवल संयम से ही निकला जा सकताहै जिससे सभी चीजे यथावत होगी ।
मन्त्र जप
।। ॐ हौँ जूँ सः ।।
प्रतिदिन प्रातः और सायं ।। ॐ हौँ जूँ सः ।। का 108 बार जप करे यह आपके शरीर मे स्वास्थ्य की आरोग्यता औऱ मन में आत्मविश्वास को बढ़ाएगा । यदि घर के सभी सदस्य एक साथ करे तो औऱ अत्यधिक फल मिलेगा
NOTE:-
“इस लेख को लिखने के लिये हमने द्रिक्पंचांग कि वेबसाइट और बृहत्संहिता का सहारा लिया है इसमे कुछ भी त्रुटि हो तो मार्गदर्शन अवश्य करें । ”
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