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वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार इस बार 14 अगस्त दिन रविवार को कजरी तीज मनाई जाएगी। पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं व्रत रखेंगी। विशेष पूजन अर्चना करेंगी।
महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय ने बताया कि हिंदू परंपरा के अनुसार तीज पर्व का काफी महत्व है। यह व्रत 14 अगस्त रविवार को भाद्रपद कृष्ण तृतीया तिथि पर पूरे दिन रहेगा। रात्रि 1:48 तक पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र व आतिगंड योग के साथ-साथ सुकर्मा योग मिल रहा है जो शुभप्रद है। पूरे दिन व्रत रहकर शाम 6.28 से रात्रि 8.09 के बीच भगवान शिव व मां पार्वती का विधिवत पूजन करके अपने पति के दीर्घायु की कामना करते हुए षोडशोपचार व पंचोपचार पूजन करना चाहिए। तीज उत्सव तीन प्रकार से मनाया जाता है। पहली सावन में हरियाली तीज, दूसरी हरितालिका तीज और तीसरी कजरी तीज होती है। इसे कजली तीज व बड़ी तीज भी कहते हैं।
जरूर करें ये काम- कजरी तीज व्रत में व्रती को व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। आगे पढ़ें व्रत कथा-
व्रत कथा
एक गांव में गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजली तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है। कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान। इस पर ब्राहमण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए।
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इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया। इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा। तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे।
ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया। ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है। इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है। ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी।
साहूकार ने कहा कि आज तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया। सभी ने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे।
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