ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं

निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।

जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं

तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥


काशी की अनसुनी कहानी के समस्त पाठको को सादर प्रणाम बाबा विश्वनाथ एवं माता पार्वती की असीम अनुकम्पा से आज हम सभी काशीके कई महत्वपूर्ण रहस्यों को समझ रहे है |  इसी क्रम में हमने पूर्व में परपरेश्वर , व्याघ्रेश्वर और शैलेश्वर शिवलिंगो के बारे में जाना और आज हम रत्नेश्वर महादेव एवं कृतिवासेश्वर महादेव के माहात्म्य का अध्ययन करेंगे |

कार्तिकेय जी कहते है – जब शैलेश्वर  शिवलिंग का दर्शन करके माता पार्वती और शिव जी वापस आ रहे थे तो उस स्थान पर गए जहा एक रत्नमय शिवलिंग प्रकट हुआ | सब प्रकार से शुभ उस लिंग का दर्शन करके माता पार्वती ने शिव जी से पूछा – देवदेव ! यह लिंग कहाँ से प्रकट हुआ है | इसका मूल तो पटल तक जा रहा है | इसका नाम क्या है और इसका प्रभाव क्या है बताने की कृपा करे |

महादेव जी बोले- हे देवी ! तुम्हारे पिता गिरिराज तुम्हे देने के लिए बहुत सरे रत्न आभूषण लेकर आयेथे और उन रत्नो को यहाँ छोड़कर वापस अपने स्थान पर चले गए | तुम्हारे या मेरे लिए  जो कुछ भी काशी में समर्पित किया जाता है उसका फल ऐसा ही होता है | यहाँ जितने भी शिवलिंग उसमे ये रत्न रूप शिवलिंग सबसे श्रेष्ठ है और मोक्षरुपी रत्न को देने वाला है | इसका नाम रत्नेश्वर है | तुम्हारे पिता ने यह जो धनराशि यहाँ छोड़ी है उससे तुम यहां एक मंदिर बनवा दो काशी में मंदिर बनवाने से शिवलिंग स्थापना का फल प्राप्त होता है | तुरंत ही पार्वती जी ने नंदी और अन्य पार्षदों को  मन्दिर बनाने का आदेश  दिया और एक ही पहर में मंदिरबनकर तैयार हो गया तत्पश्चात पार्वती जी ने उस मंदिर का माहात्म्य शिव जी से पूछा |

शिव जी बोले – देवी ! यह शिवलिंग तुम्हारे पिता के पुण्य से प्रकट हुआ है | यह परम गोपनीय है | कलियुग में कोटिरुद्र का फल इनका दर्शन करने मात्र से प्राप्त हो जाता है | इस शिवलिंग की कोई पूजा करे तो उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है |काशी में इसका हमेशा पूजन करते रहना चाहिए |

Ratneshwar Mahadev

कार्तिकेय जी कहते है – जब भगवान शिव रत्नेश्वर शिवलिंग का माहात्म्य बता रहे  थे तभी चारो तरफ से रक्षा करो , रक्षा करो की ध्वनि सुनाई पड़ी| लोग कह रहे थे की यह गजासुर आ गया है जो महिषासुर का पुत्र है यह जहाँ जहां पृथ्वी पर पैर रखता है वहां वहाँ उसके भार से पृथ्वी डगमगाने लगती है | इसने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया है की संसार का कोई भी कामी पुरुष इसे नहीं मार सकता |

तब त्रिशूलधारी भगवान शिव ने अपनी ओर आते हुए उस दैत्य को दूसरे से अवध्य जानकर उसके ऊपर त्रिशूल का प्रहार किया | गजासुर उस त्रिशूल में गूँथ गया और अपने को भगवान के सर के ऊपर टिका दिया और बोला- हे महादेव ! मै जानता हूँ , आपने कामदेव को परास्त किया है | अतः आपके हाथो मेरा वध होना श्रेष्ठ है | आप सम्पूर्ण विश्व के वंदनीय है और सबके ऊपर विराजमान है परन्तु आज मै आपके ऊपर हु  | अतः मै विजयी हुआ एकदिन सभी की मृत्यु निश्चित है , परन्तु मेरी मृत्यु परम कलयाण के लिए हुई है |

उसका ऐसा वचन सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उससे वर मांगने को कहा तब उसने वरदान माँगा- दिगम्बर यदि आप प्रसन्न है तो मेरे इस चमड़े को वस्त्र के स्थान पर धारण करे | इससे सदैव सुगंध निकलती रहे और यह सदा कोमल रहे आपके अंगो में आभूषण के  भांति चमके | और कभी अग्नि में में न जले | इसे धारण करके आपका नाम कृत्तिवास हो जाये |

भगवान ने उसे तथास्तु का वरदान दिया और बोले- तुम्हारा यह शरीर सबको मोक्ष देने वाला महानलिंग विग्रह हो जायेगा | इसका नाम कृत्तिवासेश्वर होगा कोई पापी भी इसका दर्शन करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और मनुष्य यदि शिवरात्रि पर इनका दर्शन करके रात भर जागरण तो उसे परम गति प्राप्त होती है | ऐसा कहकर भगवान ने उसके चर्म को ओढ़ लिया  और जब अपना शिवलिंग जमीं में से उखाड़ा तो वहाँ एक कुंड बन गया जिसका नाम हंस तीर्थ है | इस तीर्थ के सब ओर मुनियो के द्वारा स्थापित १०२०० शिवलंग है जिसमे किसी एक का  भी पूजन मनुष्य करे तो महान सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है |

इसप्रकार आज हम लोग ने रत्नेश्वर और कृत्तिवासेश्वर शिवलिंग के रहस्य को जाना आगे काशी में अन्य तीर्थ कैसे आये इस का अध्ययन करेंगे |

हर हर महादेव

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