कूष्माण्डेति चतुर्थकम


सभी पाठकों को सादर प्रणाम हम सभी नवरात्र के पूजा के क्रम में नवरात्र पूजा का विश्लेषण कर रहे है जिसमे आज हम चतुर्थ दिन की देवी कुष्मांडा देवी के रहस्यों को जानने का प्रयास करेंगे –

सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि कुष्मांडा देवी का नाम का क्या अर्थ है इनकी उत्पत्ति कैसे हुई और इनको क्या अर्पित करना चाहिए तभी हम इनको प्रसन्न कर सकते है ।

कुष्मांडा देवी का शाब्दिक अर्थ है – कू का अर्थ है ‘कुछ ‘ , उष्मा का अर्थ है ‘ताप ‘ , और अंडा का अर्थ यहां है ब्रह्माण्ड , सृष्टि अर्थात जिसके ऊष्मा के अंश से यह सृष्टि उत्पन्न हुई वे देवी कूष्मांडा हैं । जब संसार पूरा जल मय और अंधकार युक्त था तब मा ने संसार की रचना की और स्वयं के प्रकाश से संसार को प्रकाशित किया। माता का निवास स्थान सूर्यलोक के अंदर है और वो वही से पूरे विश्व को संचालित करती है ।

आज के दिन माता को पूजा के बाद माता के सामने स्वयं को समर्पित करना चाहिए क्योंकि अभी तक हमने अपने अंदर के समस्त प्रकार दोष एव इन्द्रियो को समर्पित किया अब हमें स्वयं को अर्पित करना है और ये प्रार्थना करना है की हे माँ जिस प्रकार से आप ने इस संसार की स्थापना और रक्षा करती है उसी प्रकार से आप हमारी और हमारे परिवार की रक्षा करे अब हम आपके शरण मे है आप हमारे ऊपर कृपा दृष्टि बनाये रखे जिससे हम कभी भी अनुचित और कार्य को न करे ।

नोट-onlinekashipandit.com को इस लेख को लिखने का उदेश्य यह है की आप माँ को किसी मूर्ति कलश या फोटो में न देखे अपितु अपने शरीर में अपने आसपास महसूस करे क्योंकि हम माँ कीस्थापना मूर्ति में तो करते ही है और साथ साथ उर्पयुक्त भाव से अपने मन , बुद्धि , वाणी एवं शरीर के अंदर भी स्थापित करे जिससे कभी भी हमें गलत कार्य न हो

कल के लेख में मा स्कंदमाता जी की रहस्य को जानने का प्रयास करेंगे

जय माता दी

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