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तीस मई को ही शनि जयंती भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि देव का जन्म हुआ था। इस पावन दिन शनि देव की पूजा-अर्चना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव कर्म फल दाता हैं। शनि देव कर्मों के हिसाब से फल देते हैं।
विशेषकर शनि की साढ़े साती, शनि की ढ़ैय्या आदि शनि दोष से पीड़ित जातकों के लिये ये दिन महत्व का है। शनि राशिचक्र की दसवीं व ग्यारहवी राशि मकर और कुंभ के अधिपति हैं। एक राशि में शनि लगभग 18 महीने रहते हैं। शनि की महादशा का काल 19 साल होता है। प्रचलित धारणाओं में शनि को क्रूर एवं पाप ग्रहों में गिना जाने वाला और अशुभ फल देने वाला माना जाता है। लेकिन असल में ऐसा है नहीं। क्योंकि शनि न्याय करने वाले देवता हैं और कर्म के अनुसार फल देने वाला है। वो दंडाधिकारी व न्यायप्रिय माने जाते हैं।
शनि जयंती, वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या को अद्भुत संयोग, महालाभ के लिए करें ये खास उपाय
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जो सिर्फ अपनी वक्र दृष्टि से राजा को भी रंक बना सकते हैं। ज्योतिषाचार्य डा.सुशांतराज के अनुसार हिंदू धर्म में शनि देवता भी हैं और नवग्रहों में प्रमुख ग्रह भी। जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में बहुत अधिक महत्व मिला है। शनिदेव सूर्य पुत्र हैं। मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या को ही सूर्यदेव एवं छाया (सवर्णा) की संतान के रूप में शनि का जन्म हुआ।
शुभ मुहूर्त-
- अमावस्या तिथि आरंभ-29 मई- 02:54 बजे, अमावस्या तिथि समाप्त-30 मई-04:59 बजे
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