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काशी के अनसुनी कहानी-4 | क्यों काशी कलियुग और काल से प्रभावित नहीं होती ?


वाराणसी निविशते न वसुन्धरायां   तत्र स्थितिर्मखभुजां भवने निवासः।
तत्तीर्थमुक्तवपुषामत एवं मुक्तिः   स्वर्गात् परं पदमुदेतु मुदे तु कीदृक।।

 

प्रिय पाठकगण आज आपके समक्ष मैं काशी के अनसुनी कहानी का चौथी कड़ी लेकर उपस्थित हुआ हूं जिसमे हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि काशी में बिना शिव की इच्छा से कोई भी प्रवेश नहींकर सकता ।

हम लोग ने इसी सीरीज के पूर्व के क्रमो में जाना कि किस प्रकार देवताओ में काशी के मोक्ष रूपी धनको पापियों से बचाने के लिए वरुणा और असि नामक दो नदियों को नियुक्त किया और काशी की रक्षा के लिए भगवान शंकर ने देहली विनायक की स्थापना की अब इसी क्रम में आगे कार्तिकेय जी द्वारा एक कथा का वर्णन है जो इस प्रकार है –

कार्तिकेय जी कहते है – दक्षिण समुद्र के किनारे सेतुबंध तीर्थ पर धनन्जय नामक एक वैश्य रहता था वह अपनी माता का बड़ा भक्त था पूण्य के मार्ग से धन कमाता था और सभी को संतुष्ट करता था । धनञ्जय श्रीकृष्ण का उपासकन्थ , वह समस्त सद्गुणों को भंडार था, तो भी सद्गुणीयो के मंडली में अपने गुणों को छिपाए रखता था । उसकी आजीविका व्यापार से ही चलती थी फिर भी वो सत्यप्रिय था , उसके गुणों का बखान ब्राह्मण आदि उच्च वर्णो के लोग करते थे  । कुछ दिनों पश्चात उसकी माता वृद्धावस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गयी ।

जब उसकी माता जवान थी तो उसने अपने पति को धोखा देकर परपुरुष के साथ सम्बन्ध स्थापित किये थे (जो स्त्री चार दिनों के जवानी पाकर मोहवश अपने पति को धोखा देती वह कभी न खत्म होने वाले नरक में जाति है फिर यदि  जन्म  हुआ तो सुअरी कर रूप में जन्म लेती है , इसलिये स्त्री को पर पुरुष के स्पर्श से भी दूर रहना चाहिए, और यदि स्त्री पतिव्रता है ब्रह्मा विष्णु महेश को भी अपने गर्भ में धारण कर सकती है  जैसे अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया ने किया था और बाद में लक्ष्मी जी सखी का पद प्राप्त कर लेती है। )धनजंय की माता ने अपने पति को धोखा दिया था इसलिए वह मृत्यु के बाद घोर  नर्क में गयी । उसका पुत्र को किसी शिवयोगी के कहने पर अपने माता के हड्डियों को काशी में गंगा जी मे प्रवाहित करने के उद्देश्य से रेशमी वस्त्रो में लपेट कर ताँबे के बक्से में रखकर उसे कपड़े से गठ्ठर बांधकर काशी के लिए चल पड़ा । वह पवित्रता पूर्वक चलता था और जमीन पर सोता था इस प्रकार उस बक्से को लेकर चलते हुए वह रास्ते मे ही ज्वर(बुखार)से पीड़ित हो गया तब उसने एक मजदूर (कहार)को गठ्ठर उठाने के लिए  उचित मजदूरी पर काशीपुरी तक के लिए निश्चित किया और काशी आ गया । वहाँ वह उस मजदूर को उस गठ्ठर की रक्षा के लिए बैठाकर कुछ खानेपीने के वस्तु लेने के लिए बाजार में गया । वह मजदूर अवसर पाकर उस गठ्ठर में से तांबे के बक्से को लेकर अपने घर भाग गया । धनन्जय जब वापस आया तो सब सामग्री में उस बक्से को न देखकर । हाय हाय करता हुआ उस बक्से को ढूंढने को चला और धीरे धीरे उस मजदूर के घर पहुंच गया । इधर वह मजदूर भी किसी वन में जाकर उस तांबेंके बक्से में केवल हड्डी को देखा तो उसे वही छोड़कर उदासमन से अपने घर कों लौटगया । इसके बाद धनंजय जब उस मजदूर के घर पहुंचा और उसकी स्त्री से पूछा कि तुम्हारा पति कहा है ? उसने मेरी माता की हड्डियां ले ली है उसे दिला दो मैं तुम्हे अधिक धन दे दूंगा । तब उसकी स्त्री ने अपने पति से सब बातें बताई । वह मजदूर ने सारी बाते उस धनन्जय को बताई और अपने साथ उस वन में ले गया । परन्तु   वह उस स्थान को भूल गया और दिशा भूल जाने के कारण वन में इधर उधर भटकने लगा जब वह थक गया तो धनन्जय को वन में छोड़कर घर वापस लौट गया । दो तीन दिन वहाँ घूम घाम कर धनञ्जय भी काशीपुरी में लौट आया । उसका मुख उदास हो गया था । फिर वह गया और प्रयाग तीर्थ में जाकर अपने घर वापस लौट गया ।

कार्तिकेय जी कहते है कि हे अगस्त जी बिना काशी विश्वनाथ की आज्ञा के बिना उस स्त्री की हड्डी काशी में प्रवेश पाकर भी तत्काल बाहर हो गयी । इसी प्रकार किसी पूण्य से काशी में पहुंचकर भी पापी मनुष्य भी काशी का फल नही प्राप्त कर पाता है । अतः काशी विश्वनाथ की आज्ञा ही काशी में राहनर कारण होती है । असि और वरुणा ये दो नदिया उस क्षेत्र की रक्षा के लिए है ।इसलिए ये वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध हुई । है जब प्रलय काल मे पूरी सृष्टि समाप्त होंजाति है तो भगवान शिव इस काशी को त्रिशूल पर रखकर इसकी रक्षा करते है। अतः काशी कली और काल से वर्जित है ।

इस प्रकार मित्रो मैंने आपके समक्ष काशी की दुर्लभता के बारे में बताया जो स्कंद और अगस्त मुनिके सम्वाद के रूप में है आगे काशीं के विभिन्न मंदिरोंका भी उल्लेख करूँगा ।

प्रणाम

जय श्री कृष्ण

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