|| ॐ ||
आत्मक्रीडास्यसततं सदात्म मिथुनस्य च।
आत्मन्येव सुतृप्तस्य योगसिद्धिरदूरत: ॥
ॐ नमः शिवाय
मेरे प्रिय पाठकगण आज बाबा विश्वनाथ एवं माता अन्नपूर्णा की कृपा से आपके समक्ष काशी की अनसुनी कहानी का छठवीं कड़ी लेकर उपस्थित हु इस सीरीज के माध्यम से हम सब काशीं के उस अद्भुत रहस्य को जाननेका प्रयास कर रहे हैं जो इस समय जानकारी के अभाव में लुप्त एवं अदृश्य होने के स्थान पर है ।
हमने पूर्व में पढ़ा था कि स्कंद भगवान अगस्त ऋषि को दण्डपाणि भैरव की उत्पत्ति के माध्यम से काशी में स्वयं के न रहने का रहस्य उद्द्घाटित किया और बताया यदि कोई मनुष्य काशी में आना चाहता है तो उसे दण्डपाणि अष्टक का पाठ करना चाहिए , अब अगस्त ऋषि स्कंद जी से ज्ञानवापी तीर्थ की उत्पत्ति के बारे में पूछा और कहा कि इसका महात्म्य भी बतलाइये ।
स्कंद जी कहते है – एक बार काशी में ईशान कोण के अधिपति ईशान नामक रुद्र स्वेच्छा से घूमते हुए काशी में आये और उन्होंने भगवान शिव के ज्योतिर्मय लिंग का दर्शन किया , जो सब ओर से प्रकाशपुंज द्वारा व्याप्त था । उसे देखकर ईशान के मन मे यह इच्छा हुई कि ‘मैं शीतल जल द्वारा इस महालिंग को स्नान कराऊँ ।’ तब उन्होंने विश्वेश्वर लिंग के समीप ही दक्षिण दिशा में त्रिशूल से एक कुंड खोदा और उस जल से भगवान शिव को स्नान कराया । वह जल अत्यंत शीतल, ज्ञानस्वरूप एव पाप का नाश करने वाला था । ईशान ने अज्ञानता के युक्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाले उस जल से सहस्त्र धारा वाले कलशों द्वारा एक हजार बार विश्वनाथजी का स्नान कराया उससे बाबा विश्वनाथ उनपर प्रसन्न होकर बोले – हे ईशान मैं तुम्हारे इस कार्य से बहुत प्रसन्न हूँ । अतः तुम कोई वर मांगो
ईशान बोले – देवेश ! यदि आप प्रसन्न है और मैं यदि वर पाने के योग्य हूँ तो यह अनुपम तीर्थ आपके नाम से प्रसिद्ध हो ।
विश्वनाथ जी बोले – “त्रिलोक में जितने भी तीर्थ है , उन सबसे यह शिवतीर्थ प्रसिद्ध होगा । शिव का अर्थ है ज्ञान और , वही ज्ञान मेरे प्रभाव से इस कुंड में जल रूप में प्रकट हुआ है । अतः यह तीर्थ सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ज्ञानोद (ज्ञानवापी) के नाम से प्रसिद्ध होगा । इसके जल के स्पर्श मात्र से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाएगा । फलगुतीर्थ (गयातीर्थ) में स्नान और पितरो का तर्पण करने मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है उस फल को ज्ञानवापी के समीप श्राद्ध करने से प्राप्त कर लेगा । जिस दिन गुरुपुष्य हो उस दिन यहां श्राद्ध करने से गया कि तुलना में करोड़ों गुना अधिक फल प्राप्त होगा । यदि कोई आने में असमर्थ हो तो केवल ज्ञानवापी तीर्थ का स्मरण कर तो भी उसके समस्त पाप का नाश हो जाता है और उस जल के पान से धर्म अर्थ काम मोक्ष चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति होती है। जो उत्तम बुद्धि वाला पुरुष मुझे इस जल से स्नान कराएगा उसको समस्त तीर्थो के जल से स्नान कराने का फल प्राप्त होगा ।“
इसप्रकार वरदान देकर बाबा विश्वनाथ वहाँ से अंतर्धान हो गए और उन त्रिशूल धारी ईशान ने अपने आपको सौभाग्य शालीमाना|
इस प्रकार मित्रो मैने आपके समक्ष आज ज्ञानवापी तीर्थ के प्राकट्य के बारे में पढ़ा आगे इसके महात्म्य का करेंगे
प्रणाम
जय श्री कृष्णा
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