Batuk Bhairav Ashtottar Shatnaam Stotram – Hindi
बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – हिंदी
प्रार्थना
महादेव के परम प्रिय, भैरव नाथ महान ।
पूर्ण कृपा मुझ पर करो, दास आपका जान ॥ १ ॥
बारम्बार प्रणाम कर, चरण धुरि शिरधार ।
अष्टोत्तर शत नाम का, सुमरण करुँ पुकार ॥ २ ॥
सामान्य ध्यान
सुन्दर भव्य प्रतापी आनन । गौर वर्ण छवि कुण्डल कानन ॥
नर कपाल कर में अति सोहें । अहि उपवीत देखि मन मोहैं ॥
कटि किंकिण पद् गुघर बाजै । आंत्र माल वैजंति विराजे ॥
देखत दुष्ट दैत्य घबरावें । भक्त चरण में शीश नवावें ॥
सकल मनोरथ पुरक स्वामी । बार बार वर मांगहुँ नामी ॥
शीघ्र दया कर मम सुधि लीजै । चरण सरण दे कारज कीजै ॥
विशेष ध्यान
नील वर्ण अति उज्ज्वलरूपा । अष्टादश भुज परम अनूपा ॥
पंचानन छवि अद्भुत राजै । बाल प्रताप पौरूष अति साजै ॥
नेत्र त्रय अति सुंदर सोहैं । दैत्य भयंकर जन मन मोहैं ॥
पंकज वज्र शंख शर शूला । डमरु गदा असि चापनुकुला ॥
परशु ज्ञान मुद्रा मुण्ड धारी । खट्वाङ्गौषधि कर में डारी ॥
मुद्रा अभय चक्र अहि पाशा । पान पात्र शुचि करत प्रकाशा ॥
भक्त जनों के परम कृपाला दर्शन दे मेटें सब जाला ॥
सकल मनोरथ पूरक स्वामी । बार बार तव चरण नमामि ॥
मुद्रा ज्ञान कञ्जकर साजै । अपर हस्त में वज्र विराजै ॥
भेषज शंख चाप कर माहीं । शूल खट्वाङ्ग बाण छवि पाहीं ॥
डमरु गदा असि चक्र मनोहर । पाश त्रिशुल मुण्ड कर सुन्दर ॥
होई मुदित पल में अपनावैं । भक्त इष्टप्रद रुप दिखावै ॥
नमो नमो भैरव बलवाना । अरिकुल मारि देउ वरदाना ॥
जय जय भैरव सब सिद्धि दायक । भक्त इष्ट पूरक सब लायक ॥
दशभुज ध्यान
पद्मासन आसीन कृपाला । परम शांत छवि दीन दयाला ॥
चंद्र मुकुट शुभ सीस विराजै । मुण्डमल छवि उर बिच साजै ॥
तीन नयन सुषुमा अति सोहें । अनुपम छवि त्रिभुवन मनमोहें ॥
शूल खड्ग अरु वज्र विराजै । परशु मुसल दक्षिण कर राजै ॥
नाग घण्ट सुकपाल सुहावै । नलिन पाश अंकुश छवि छावै ॥
नाना भूषण भूषित झांकी । स्फटिकोपम सुषुमा अति बाकी ॥
विश्वकर्षक शिव सिर नाऔं । करहु कृपा पद पङ्कज ध्याऔं ॥
अष्टभुज ध्यान
शुद्ध स्फटिक सरिस शुभ भासै । सहस सूर्यसम दीप्ति प्रकासै ॥
नील मेघ सम वर्ण विराजै । नीलञ्जन सम प्रभा सुसाजै ॥
आठ भुजा दृग तीन विराजै । भुला चार युग भुजसौं भ्राजै ॥
दन्तुर वदन परम शुभ सोहै । नुपूर धुनि सौं त्रिभुवन मोहैं ॥
भुजग मेखला परम सुहाईं । अग्निवर्ण शिख हृदय लुभाई ॥
दिग् अम्बर सब बालक राजा । अति बलवन्त बटुक महाराजा ॥
कर खट्वाङ्ग पाश असि राजै । दक्षिण में शुभ शूल विराजै ॥
डमरु कपाल भुजग वरदाना । अनल सरिस शुभ तेज निधाना ॥
सारमेय वाहन संग सोहै । ध्यान धरत त्रिभुवन मन मोहै ॥
सकल कामना तुरत पुरावै । जै निज हियमहं बटुकहि ध्यावैं ॥
द्विभुज ध्यान
कर कपाल शुभ सुन्दर राजै । कुण्डल कर्ण दण्ड कर साजै ॥
तरुण तिमिर सम नील स्वरुपा । व्याल यज्ञ उपवीत अनूपा ॥
विघ्ननाशी मखरक्षक पूरे । साधु सिद्धिप्रद रण अति शूरे ॥
जय-जय बटुकनाथ सिद्धि दायक । कृपासिन्धु प्रभु भक्त सहायक ॥
पाठ आरम्भ
नमो नमो भैरव सिद्धि दाता । भूतनाथ भव भयतें त्राता ॥
भूतात्मा भूतल उजियारे । बटुक भूत भावन मतवारें ॥ १ ॥
क्षेत्रद क्षेत्रपाल सूरराटा । क्षत्रियवर क्षेत्रज्ञ विराटा ॥
जय स्मशानवासी शुभनामा । मांसशी प्रभु मंगलधामा ॥ २ ॥
नमो खर्पराशी भगवंता । जय स्मरांतक रूप अनंता ॥
हे खरांतक अतिबलवाना । हे मखांतक सर्वसुजाना ॥ ३ ॥
रक्तप तोहिं बहुरि सिरनाओं । पानप सिद्ध हृदय महँ ध्याओं ॥
रक्तपान तत्पर बलि जाऔं । पुनि पुनि प्रभु तोहिं सीस नवाऔं ॥ ४ ॥
सिद्धिद देव सिद्धि के नाथा । सिद्धि सुसेवित सेवक साथा ॥
जय कंकाल कुटिल नर नाशी । कालशमन जय सब सुख राशि ॥ ५ ॥
नमो कलाकाष्ठा –तनुधारी । जय जय कवि सर्वज्ञ सुखारी ॥
जय त्रिनेत्र बहुनेत्र नमामि । पिंगललोचन शरण व्रजामि ॥ ६ ॥
शूलपाणी जय दीन दयाला । खड्गपाणि जय परम कृपाला ॥
कङ्कालि तोहि कोटि प्रणामा । जयतु धुम्रलोचन शुभनामा ।। ७ ॥
जय अभीरु जय भैरवनाथा । भूतप योगिनिपति शुचि गाथा ॥
नमो धनद अधनहारी देवा । जय धनवान विश्वसुख देवा ॥ ८ ॥
जय प्रतिभानवान सुरस्वामि । जय प्रतिभावित अंतर्यामी ॥
नागहार तव चरण नमामि । देव दयामय सदा भजामि ॥ ९ ॥
नागपाश जय जय सुरसाईं । व्योमकेश जय प्रभु गुसंई ॥
नागकेश जय जय सुरराया । कीजै नाथ भक्त पै दाया ॥ १० ॥
जय कपालभृत् काल कराला । जय कपालमाली जगपाला ॥
जय कमनीय कलानिधि त्राता । जयतु त्रिलोचन आनन्ददाता ॥ ११ ॥
ज्वलन् नेत्र त्रिशखी तोहि ध्याऔं । नमो त्रिलोकप सब सिद्धि पाऔं ॥
जय त्रिनेत्रतनय सुखराशी । जय हेडिम्भ नित्य अविनाशी ॥ १२ ॥
जय हेशांत भक्त वरदाई । डिम्भशांत प्रभु भक्त सहाई ॥ ॥
शांतजनप्रिय दीन दयाला । नमो बटुक बहुवेष कृपाला ॥ १३ ॥
जय खट्वाङ्ग वरधारक देवा । जय परिचारक जन मन सेवा ॥
जय जय पशुपति भिक्षुक देवा । जय परिचारक जन मन मेवा ॥ १४ ॥
जय परिवारक जग के स्वामी । तुम कह बारम्बार नमामि ।।
धूर्त दिगम्बर शूर भजामि । हरिण पाण्डुलोचन जय स्वामी ॥ १५ ॥
जय प्रशांत हे शान्तिप्रद शुद्धा । सिद्ध युद्ध जयकारी बुद्धा ॥
हे शंकर प्रिय बांधव नामी । शंकरप्रिय बांधव शुभ कामी ॥ १६ ॥
अष्टमूर्ति जय देव निधीशा । ज्ञानचक्षु तपोमय ईशा ॥
अष्टाधार नमोसुर स्वामी । षडाधार जग अन्तर्यामी ॥ १७ ॥
सर्पयुक्त शिखिसख भूधर जय । जय भूधर अधीश मंगलमय ॥
भूपति भूधर आत्मज दाता । भूधर आतम्क सब जग त्राता ॥ १८ ॥
जय कङ्कालधारि सुरनाथा । मुण्डी तोहि नवावों माथा ॥
नाग यज्ञ उपवीत विराजै । आन्त्रयज्ञ उपवीत सुसाजै ॥ १९ ॥
जृम्भण मोहन स्तम्भन स्वामी । मारण क्षोभण जगसुख कामी ॥
हे गुरुदेव ज्ञान के दाता । भोग मोक्ष प्रद कृपा विधाता ॥ २० ॥
शूद्ध नील अञ्जन प्रख्याता । देव दैत्यहा सेवक त्राता ॥
मुण्ड विभुषित छवि सरसाये । सकल सुमङ्गल मूल सहाये ॥ २१ ॥
बलि भुक् तुम बलि भुङ् नाथा । बाल अबाल पराक्रम साथा ॥
जय सर्वापत्तारण स्वामी । दुर्गरूप प्रभु अन्तर्यामी ॥ २२ ॥
दुष्ट भूत निषेवित देवा । कामी कामफल प्रद सेवा ॥
जयतु कलानिधि कान्त सुनामी । कामिनी वशकृत तोहि नमामि ॥ २३ ॥
सकल जगत वशीकृत नामा । कामिनी वशकृत वशी लालामा ॥
देव जगत रक्षा कर जय जय । अनन्त माया मन्त्रौषधि मय ॥ २४ ॥
सर्व सिद्धि प्रद वैद्य महाना । हे प्रभु विष्णु विवेक निधाना ॥
तुम विभु अखिल विश्व सरसाओ । भक्त भरण करि सुयश कमाओ ॥ २५ ॥
अष्टोत्तर शतनाम स्वरूपा । कल्पवृक्ष यह परम अनूपा ॥
जपत जीव सब मंगल पावै । सकल कामना तुरत पुरावै ॥ २६ ॥
दुरित भूत भय मारी भीती ।जपत मिटै फल में सब ईती ॥
राज शत्रु ग्रह भय नहिं लागै । भैरव स्तवन करत दुख भागै ॥ २७ ॥
अष्टोत्तर शत नाम शुभ, जपत धरै नित ध्यान ।
तिनकहँ भैरव लाडिले, सदा करैं कल्याण ॥ २८ ॥
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