श्रीकेदारेश्वर महादेव महात्मय

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।

 सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥

            भावार्थ- जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।

काशी की अनसुनी कहानी के समस्त पाठकों को सादर प्रणाम ।हम सभी इस सीरिज के अंतर्गत काशी के रहस्यों का अध्ययन शास्त्रों के द्वारा कर रहें है जो कि बहुत ही आनंददायक एवं रोचकता को लिये हुए है । हमने पुर्व मेंअध्ययन किया है कि किस प्रकार माता पार्वती के पुछे जाने पर भगवानभूतभावन ने समस्त काशी के एक रह्स्यों को बताया और जब देवि ने उनके काशी के विशेष शिवलिंग के बारेमे पुछा जिसमे उनका सदा वास रहता है तब भगवान ने चौदह शिवलिंगो का वर्णन किया है जिसमे से दो शिवलिंगो ( ॐकारेश्वर, त्रिलोचन) का माहत्म्य का अध्ययन हम पुर्व में ही कर चुके है । आज हम केदारेश्वर लिंग की माहत्म्य का अध्ययन करेंगे जो कि केदारघाट के पास स्थित है ।

पार्वतीजी बोलीं– करुणानिधान! अब अपने भक्तोंपर कृपा करके केदार का महात्म्य का वर्णन करिये ।

श्रीमहादेव जी बोलें– पार्वती! प्राचीन काल  में उज्जैन नगरी से यहाँ एक ब्राह्मण आया था । उसका नाम वशिष्ठ था उसने हिरण्यगर्भ नामक आचार्य से पाशुपत नामक उत्तम व्रत की दीक्षा ली । प्रतिदिन हरपाप नामक कुण्ड मे स्नान करके वह तीनोकाल मे शिवलिंग कि पुजा करता था और नित्यप्रति विभुतिस्नान करता था । वह शिव और गुरु मे भेद नही करता था । वशिष्ठ की अवस्था जब बारह वर्ष कि थी तभी वह अपने गुरु के साथ केदार तीर्थ की यात्रा करने के लिये हिमालय को गया , रास्तेमे ही उसके गुरु हिरण्यगर्भ की मृत्यु हो गयी । उस समय भगवान शिव के पार्षदआयें और सभी के देखते देखते हिरण्यगर्भ को विमान पर बिठाकर कैलाशको ले गये । यह देखकर वशिष्ठ ने सभी लिंगोमें केदार लिंग को सर्वश्रेष्ठ माना और केदार क्षेत्र की यात्रा पुरी करके काशीपुरी को लौट आया । और यहाँ आकर उसने प्रतिज्ञा की” मै जबतक जीवित रहुँगा,तबतक काशीपुरीमें निवास करता हुआ प्रत्येक चैत्र मास की पूर्णिमा को भगवान केदार का अवश्य दर्शन करुँगा ।“इस प्रकार वह काशी मे ब्रह्मचर्य से रहते हुए हिमालयस्थित केदार क्षेत्र की एकसठ(61)यात्रा पुरी की । उसके बाद चैत्रमास आने पर पुन: बड़े उत्साह के साथ यात्रा प्रारम्भ की। लेकिन वह वृद्ध हो चुका था फिर भी उसके उत्साह में कमी नही आयी । उसके संगी साथियों ने रोका भी तो भी वह नही रुका।उसने सोच लिया था  कि अगर रास्ते मे उसकी मृत्यु भी हो जाती है तो गुरुजी के तरह मेरी गति होगी । देवि ! उसकी इतनी भक्ति देखकर मै बहुत प्रसन्न हुआ और स्वप्न में उसे दर्शन देकर कहा – मुझको ही केदार समझो और मुझसे मनोवांछित वर मांगो ।

मेरे इसप्रकार कहने पर वशिष्ठ ने कहा – देवेश्वर ! यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो यहाँ मेरे साथ रहने वाले सभी पर अनुग्रह करें । उसकी परोपकार युक्त वचनो को सुनकर मैने”तथास्तु कहा फिर उसकी अब तक की तपस्या को भी द्विगुणित कर दिया और पुन: उससे वर माँगने को कहा ।तब वशिष्ठ ने प्रार्थना की कि “आप हिमालय से यहीं आकर रहें ।“उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर मै एक कला से हिमालय पर और पंद्रह कला से यहाँ काशी में आकर रह गया ।वशिष्ठ और उसके साथियों के ऊपर अनुग्रह करके मै काशीमें हरपाप कुण्ड के समीप स्थित हुआ । मेरे निवास से यहाँ पर अनेकों लोग उस कुंडमे स्नान करके सिद्धि प्राप्त कर चुके है, और मै भी साधकों को सिद्धि प्रदान करनेके लिये इस काशी मे केदार लिंग में स्थित हुआ हुँ। हिमालय में  चढकर केदारेश्वर का दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है , वही काशीमे केदार दर्शन करनेसे सात गुनाहोकर मिलता है । हरपाप तीर्थ सात जन्मों के पाप का नाश करता है ,वहीं उसमे गंगा मिल जायेतो करोड़ो जन्मके पाप का नाश होताहै। यहाँ अमृतदेने वाली गंगाहै । आगे चलकर मानसरोवर ने यहां तपस्या की थी जिससे इसका नाम मानसतीर्थ हुआ।जो केदारतीर्थ मे स्नान करके बिना जल्दबाजी के पिण्डदान करता है उसकी अनेक पीढियाँ भवसागर से पार हो जाती है । जो भौमवती अमावस्या को यहाँ श्राद्ध करता है उसे गया करने की आवश्यकता नही । एकबार दर्शन करके मनुष्य मेरा पार्षद बन सकता है । अतः काशी में प्रयत्नपुर्वक केदारेश्वर के दर्शन करना चाहिये । इनसे उत्तर मे चित्रांगदेश्वर लिंग का दर्शन करने से स्वर्गीय भोग प्राप्त होता है । दक्षिण भाग मे नीलकण्ठ का दर्शन करने से मनुष्य को संसार से मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है । केदार से वायव्य कोण मे  अम्बरीषेश्वर का दर्शन करने से मनुष्य को पुन: गर्भवास का दु:ख नही भोगना पड़ता । इन्ही के समीप इंद्रद्युम्नेश्वर का पुजा करने से समस्त  आनंद को प्राप्त करता है ।इनके दक्षिण भाग में कालंजरेश्वर का दर्शन करनेसे मनुष्य वृद्धावस्था और काल पर भी विजयप्राप्त कर लेता है । चित्रांगदेश्वर लिंग के उत्तर में क्षेमेश्वर लिंग का दर्शन करने से इसलोक और परलोक दोनोमें कल्याण की प्राप्ति होती है ।

कार्तिकेय जी कहते है- अगस्त्य ! केदारेश्वर लिंग की  कथा सुनकर पुण्यात्मा पुरुष क्षण भर में निष्पाप हो जाता है और अंत मे शिवलोक को प्राप्त होता है ।

इसप्रकार आज हम लोगो ने शिवपार्वती संवाद के रुप मे  श्रीकेदारेश्वर महात्मय का अध्ययन किया है जो अत्यधिक पुण्य को देने वाला है । अगले क्रम मे ऐसे ही एक और शिवलिंग का अध्ययन करेंगे जिसके दर्शन मात्र से गायत्री जप का फल मिलता है ।

हर हर महादेव

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