मरणं मंगलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते।


काशी की अनसुनी कहानी के सभी पाठकगण को सादर प्रणाम हम सभी काशी की रहस्यों का अध्ययन कर रहे है ।
आप सभी से क्षमाप्रार्थी भी हूँ जो विगत कुछ दिनों से काशी के कथा का लेखन नही कर पाया इसमे भी बाबा विश्वनाथ जी की ही इच्छा होगी । आज से पुनः भगवत इच्छा से हम इस क्रम को आगे बढ़ाते है और इस क्रम में आगे के रहस्यों को जानते है ।

हम लोग ने पूर्व के अध्यायों में काशी में दुर्गा जी के स्थान एवं उनके भैरव और बेतालों का अध्ययन किये थे आज शिव पार्वती सम्वाद का आनंद लेते हुए काशी में स्थित ॐ कारेश्वर तीर्थ के रहस्य का अध्ययन करते है ।

कार्तिकेय जी कहते है – जब शिव जी त्रिविष्टप यानी त्रिलोचन में शिव जी निवास कर रहे थे तब पार्वती जी ने पूछा – यह काशी समस्त लोको से अद्भुत है और यहां का एक एक कण भी अनेक प्रकार के सिद्धियों को देने वाला है । इसतीर्थ की महिमा अनन्त हैं जिसका वर्णन नही किया जा सकता है । मैं भी इस क्षेत्र से अत्यंत प्रेम करती हूं । प्रभो ! आपसे एक बाद जानना चाहती हु की काशी में ऐसा कौन सा लिंग है जिसका पूजन करने से सभी लिंगो के पूजा का फल मिलता है ?

शिव जी बोले – काशी में अनेको लिंग है जोकि ऋषियों , देवताओ और स्वयं से स्थापित है जिनका पूजन एवं दर्शन करने मात्र से अनेको पुण्यो का लाभ मिलता है । अब मैं तुम्हे उन चौदह दिव्यलिंग का वर्णन करता हु जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है

1. ॐ कारेश्वर लिंग – मच्छोदरी में प्रसिद्ध मंदिर
2. त्रिलोचन लिंग – त्रिलोचन घाट पर प्रसिद्ध मंदिर
3. आदि महादेव लिंग – त्रिलोचन मंदिर के पास A 3/92 में
4 . कृत्तिवासेश्वर लिंग – हरतीरथ पर प्रसिद्ध मंदिर
5 . रत्नेश्वर लिंग – महामृत्युंजय मंदिर के मार्ग पर
6 . चंद्रेश्वर लिंग – सिद्धेश्वरी देवी के मंदिर के अंदर
7 . केदारेश्वर लिंग – केदार घाट पर प्रसिद्ध मंदिर
8 . धर्मेश्वर लिंग – विशालाक्षी मंदिर के सामने
9. वीरेश्वर लिंग – सिंधिया घाट पर प्रसिद्ध मंदिर
10. कामेश्वर लिंग -मच्छोदरी अस्पताल के पास में
11. विश्वकर्मेश्वर लिंग -गोलगड्डा पीलीकोठी पर A34/106 में
12. मनिकर्णीश्वर लिंग -मणिकर्णिका घाट पर गोमठ में
13 . अविमुक्तेश्वर लिंग – विश्वनाथ मंदिर में
14. विश्वेश्वर लिंग – स्वयं विश्वनाथ जी

महादेव जी ने पार्वती जी से इस लिंगो के महत्व को बताते हुए कहा कि जो मनुष्य इन अविमुक्त क्षेत्र में इनका दर्शन करता है उसका पुनर्जन्म नही होता है ।

प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी पर्यंत इन महालिंगो की यात्रा अवश्य करनी चाहिए । ये चौदह लिंगो में मेरा सामीप्य हमेशा बना रहता है । इसके पश्चात महादेव चतुर्दश आयतन के अन्य लिंगो का भी वर्णन किया जो इस प्रकार है –

1- शैलेश्वर लिंग – शैलपुत्री मंदिर में , सरैंया
2- संगमेश्वर लिंग – आदिकेशव मंदिर में , राजघाट
3- स्वरलिनेश्वर लिंग – प्रह्लादघाट A 11/30 में
4- मध्यमेश्वर लिंग – महामृत्युंजय मंदिर में
5 – हिरण्यगर्भेश्वर लिंग- त्रिलोचन घाट मढ़ी में
6- ईशानेश्वर लिंग – बांसफाटक में C37/43 में
7-गोप्रेक्षेश्वर लिंग – लाल घाट पर गौरीशंकर नाम से प्रसिद्ध
8-वृषभध्वजेश्वर लिंग – कपिलधारा में प्रसिद्ब मंदिर
9-उपशांतेश्वर लिंग – राम घाट पर प्रसिद्ध मंदिर
10- ज्येष्ठेश्वर लिंग – काशी पूरा कर्णघंटा पर प्रसिद्ध मंदिर
11- निवासेश्वर लिंग – भूत भैरव के पास
12- शुक्रेश्वर लिंग – कालिकागली में
13- व्याघ्रेश्वर लिंग -भूतभैरव के पास
14- जम्बुकेश्वर लिंग – लोहटिया बड़ा गणेश के सामने

इन चौदह लिंगो की यात्रा करने से मनुष्यों की समस्त कामनाओ की पूर्ति होती है ।

महादेव जी ने जब समस्त लिंगो के नाम एव महत्व को बताया तब पार्वती जी ने उनसे सभी लिंगो का काशी में कैसे आविर्भाव हुआ इसका कारण पूछा तब भगवान शिव ने प्रथम लिंग ॐकारेश्वर लिंग का वर्णन किया है जिसका वर्णन हम कल के भाग में करेंगे ।

जय श्री कृष्ण

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