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आश्विन कृष्ण पक्ष पर रविवार को सर्वपितृ अमावस्या है। सर्वपितृ अमावस्या के साथ एक पखवाड़े तक चले पितृपक्ष का विसर्जन के साथ समापन हो जाएगा। इस मौके पर जातक महाविष्णु प्रित्यर्थ के बाद ब्राह्मणों को भोज कराएंगे। इसके बाद पितृ विसर्जन का अनुष्ठान संपन्न होगा। हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदन करने वाला पखवाड़ा पितृ पक्ष दस सितम्बर से आरंभ हुआ था। एक पक्ष के 15 दिनों में पितृ लोक से पितर देवता जल ग्रहण करने के लिए मृत्यु लोक पहुंचते हैं। मान्यता है कि पितर इस आशा से मृत्यु लोक आते हैं कि उनका तर्पण होगा। जो संतान पितरों को जल प्रदान कर तर्पित करता है, वह पितर पुत्रों की जय-जयकार कर पितृ लोक लौट जाते हैं। इस पक्ष में श्रद्धा से दी जाने वाली वस्तु ही पितरों को प्राप्त होती है।

क्या है सर्वपितृ पितृ तर्पण

  • जिन जातकों को उनके कुल-खानदान के दिवंगतों के नाम, पुण्यतिथि और गोत्र के अलावा अन्य बातें मालूम नहीं हैं, वे सर्वपैत्री अमावस्या पर पितृ तर्पण कर सकते हैं। इस दिन सुबह में या फिर दोपहर में नदी, तालाब में स्नान के बाद तिल, जौ और जल से पितरों को तर्पित करने का विधान शास्त्रों में उल्लेखित है। तर्पण के बाद आशीष देकर पितर देव पितृ लोक लौट जाते हैं।

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दान का है महात्म्य

  • ब्राह्मणों को सामर्थ्य के मुताबिक भोजन कराना भी इसी यज्ञ में शामिल है। इसके अलावा जरूरतमंद लोगों के बीच सूखा अनाज, भोजन, द्रव्य और वस्त्र के दान का भी महात्मय है। पितरों को धन से नहीं, बल्कि सुंदर भावना से प्रसन्न करना चाहिए।

सर्वपितृ अमावस्या पर तर्पण करने वाले सनातनी समाज के जातक शुद्ध मनोभाव से दिवंगतों को याद करें। उस समय मन में किसी प्रकार से द्वंद्व की उत्पति नहीं होने देना चाहिए एवं ध्यान दिवंगतों की सद्गति पर लगाना चाहिए। उनकी तृप्ति के निमित्त आयोजन को सार्थक बनाएं।- आचार्य श्रीकृष्ण, ज्योतिषाचार्य

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