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शक्ति की साधना और आराधना का पवित्र पर्व गुप्त नवरात्रि बुधवार से आरम्भ होगा। गुप्त नवरात्रि पर इस बार रवियोग व सर्वार्थसिद्धि योग बन रहे हैं, जिससे मां दुर्गा की पूजा-उपासना का फल कई गुना बढ़ जाता है।

इस बाबत ज्योतिषाचार्य आचार्य राकेश पांडेय ने बताया कि सनातन परंपरा में शक्ति की आराधना और साधना का महापर्व नवरात्रि साल में दो बार ही नहीं चार बार आता है। पंचांग के अनुसार प्रथम चैत्र मास में पहली वासंतिक नवरात्रि, चौथे मास यानि कि आषाढ़ मास में दूसरी नवरात्रि, आश्विन मास में तीसरी यानि शारदीय नवरात्रि और ग्यारहवें मास यानि माघ मास में चौथी नवरात्रि आती है। इसमें से माघ मास में पड़ने वाली नवरात्रि को माघ गुप्त नवरात्रि और आषाढ़ मास में पड़ने वाली नवरात्रि को आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के रूप में जाना जाता है।

इस वर्ष की पहली नवरात्रि माघ मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा यानि 2 फरवरी से आरंभ होने जा रही है। आचार्य राकेश पांडेय के इस बार गुप्त नवरात्र में ग्रहों के विशेष योग बन रहे हैं, जिसके चलते पुण्य फल कई गुना बढ़ गया है और इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस बार 19 वर्षों बाद गुप्त नवरात्र में राहु अपनी मित्र राशि वृषभ में स्थित है। इससे पहले यह स्थिति 2 फरवरी 2003 में बनी थी, जब गुप्त नवरात्र की शुरुआत में राहु के वृषभ राशि में रहते हुए हुई थी। वहीं इस बार तो सूर्य और शनि भी मकर राशि में मौजूद हैं और मकर राशि का स्वामित्व शनि को प्राप्त है। ऐसे में सूर्य व शनि के एक साथ एक ही राशि में होने के चलते तंत्र क्रियाएं सुगमता से होती हैं। जिसका प्रभाव गुप्त नवरात्र में साधना करने वाले लोगों को प्राप्त होगा।

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10 महाविद्याओं की होती है पूजा: आचार्य राकेश पांडेय के अनुसार नवरात्रि में जहां देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है वहीं गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी की साधना आराधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में शक्ति की साधना को अत्यंत ही गोपनीय रूप से किया जाता है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि की पूजा को जितनी ही गोपनीयता के साथ किया जाता है, साधक पर उतनी ज्यादा देवी की कृपा बरसती है।

इस तरह करें पूजा: माघ मास की गुप्त नवरात्रि की साधना के लिए घट स्थापना दो फरवरी को प्रात: 07:09 से 08:31 तक करना अत्यंत शुभ रहेगा। गुप्त नवरात्रि के दिन साधक को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करके देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को एक लाल रंग के कपड़े में रखकर लाल रंग के वस्त्र या फिर चुनरी आदि पहनाकर रखना चाहिए। इसके साथ एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोना चाहिए। जिसमें प्रतिदिन उचित मात्रा में जल का छिड़काव करते रहना होता है। मंगल कलश में गंगाजल, सिक्का आदि डालकर उसे शुभ मुहूर्त में आम्रपल्लव और श्रीफल रखकर स्थापित करें। फल-फूल आदि को अर्पित करते हुए देवी की विधि-विधान से प्रतिदिन पूजा करें। अष्टमी या नवमी के दिन देवी की पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें पूड़ी, चना, हलवा आदि का प्रसाद खिलाकर कुछ दक्षिण देकर विदा करें। गुप्त नवरात्रि के आखिरी दिन देवी दुर्गा की पूजा के पश्चात् देवी दुर्गा की आरती गाएं। पूजा की समाप्ति के बाद कलश को किसी पवित्र स्थान पर विसर्जन करें।

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