वाचामगोचरमनेक गुण स्वरूपं

वागीश विष्णु सुर सेवित पाद पद्मं |

वामेण विग्रह वरेन कलत्रवंतं

वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधं ||


काशी की अनसुनी कहानी के समस्त पाठक गणको सादर प्रणाम आज बाबा विश्वनाथ की कृपा से हम इस काशीके रहस्यों का अध्ययन कर रहे है जिसके माध्यम से हमने पूर्व में महाविष्णु के स्थानों के बारे में जाना | अब आज इस सीरीज के माध्यम से भगवान विष्णु के साथ हम सभी काशी में भूतभावन बाबा का स्वागत करेंगे |इसलिए आज आप सब तैयार हो जाइये भगवान शिव के स्वागत के लिए ,और अपने मन को उस स्थान पर ले जाइये जहा पर सभी देवता बाबा का स्वागत कर रहे है , आज onlinekashipandit.com के लिए प्रसन्नता का दिन है क्योंकि आज भगवान विश्वनाथ काशी में वापस आ रहे है  | हर हर महादेव

कार्तिकेय जी कहते है जब विष्णु जी अग्निबिन्दु को भगवान सारूप्य करने के पश्चात् ब्रह्मा जी को आगे करके भगवान शंकर के स्वागत के लिए आगे बढे | तदनन्तर ब्रह्मा जी ने रूद्र सूक्त एवं स्वस्तिवाचन के द्वारा शिव जी का स्तवन किया | श्री गणेश जी ने उनके चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया | तब महादेव जी ने हर्ष में भर कर अपने आसनपर बिठा लिया | सोम , नंदी आदि गणोने साष्टांग प्रणाम किया | योगिनियों ने मंगलगान किया तत्पश्चात सूर्यदेव ने प्रणाम किया | भगवान विश्वनाथ ने श्री हरि को अपने सिंहासन के समीप ही वामभाग में बैठाया और  ब्रह्मा जी को अपने दक्षिण में आसन दिया | फिर योगिनिया, सूर्यदेव , को संतुष्ट किया |

ब्रह्मा जी हाथ जोड़कर डरते हुए बोले – हे देवदेवेश्वर ! मै काशी के आने के बाद पुनः आपके सेवा में नहीं आ सका| मेरे इस अपराध को क्षमा करे |

ब्रह्मा जी की बात सुनकर विश्वेश्वर जी बोले – ब्रह्मन ! मै सब कुछ जानता हु  | आप यहाँ आकर ब्राह्मण बने और दशअश्वमेध यज्ञो का सम्पादन किया ये बहुत ही उत्तम है | इसके सिवा आपने मेरे स्वरूपों की स्थापना करके अपना परमहित किया है  |

देवेश्वर भगवान शिव की बात सुनकर योगिनियो ने संतोष की साँस ली | तभी सूर्यदेव ने अवसर जानकर भगवान शिव जी से बोले – आपके समीप से काशी आकर मैंने यथाशक्ति उपाय किया परन्तु  सफल न हो सका | |आपका आगमन निश्चित है , ऐसा जानकर मै यहीं ठहरा हुआ हूँ | सूर्य के वचन को सुनकर महादेव ने बोला – राजा दिवोदास के शासनकाल में यहाँ देवताओ का प्रवेश नहीं होपता था , तो भी तुम इस पूरी में आकर ठहर गए , इससे मेरा कार्य ही सिद्ध हुआ | सूर्य को आश्वासन देकर योगिनियों को भी प्रसन्न किया | इसके बाद भगवान विष्णु की ओरदेखा – भगवान से कुछ नहीं बोला क्योंकि गरुड़ जी एवं गणेश ने पूर्व में ही सब कुछ बता दिया था |

इसी समय गोलोक से सुनंदा , सुमना , सुशीला , सुरभि , और कपिला नामकी पांच गौए आयी और अपने थनों से  भगवान शिव का अभिषेक किया और तबतक किया जबतक एक सरोवर  भर नहीं गया | भगवान शंकर ने उस सरोवर का नाम कपिला कुंड रखा (जो वर्तमान कपिलधारा के नाम से प्रसिद्ध है ) | तत्प्श्चात पितरो ने उस तीर्थ पर आकर विधिपूर्वक तर्पण किया |

फिर भगवान भोलेनाथ ने वरदान दिया की जो इस कपिला तीर्थ पर सोमवती अमावस्या के दिन श्राद्ध करेगा उसके पिता सदा के लिए तृप्त हो जायेंगे | यह  तीर्थ शिवगय के नाम से प्रसिद्धहोगा | यहाँ पर किया गया कोई भी कर्म अक्षय हो जायेगा कभी समाप्त नहीं होगा | यह स्थान काशी के सिमा के बाहर है , तो भी यहाँ मेरा सामीप्य होने के कारण इसे काशीपूरि के भीतर ही जानना चाहिए | मैं यहाँ अपने सभी पार्षदों के साथ सदा सर्वदा निवास करूँगा |

इसी समय नंदिकेश्वर ने रथ को तैयार करके भगवान शिव से विजययात्रा प्रारम्भ करने का   निवेदन किया | तब अष्टमातृकाओं ने भगवान की आरती उतारी और भगवान शिव के इस विजय यात्रा में तैतीस करोड़ देवता के साथ बिस करोड़ शिवगण , नौ करोड़ देवी गण , एक करोड़ बहिरावी गण , आठ करोड़ कार्तिकेय जी के गण , सात करोड़ गणेश जी के गण , छियासी हजार ब्रह्म मुनि और इतने ही गृहस्थ भी आये | और ऐसे ही अन्य करोडो पातालवासी नाग यक्ष , गौ आदि भी इस विजय यात्रा में सम्मिलित हुए |  भगवान इन सभी को साथ में लेकर बड़े ही प्रेम से काशी पूरी में प्रवेश किया |

स्कन्द जी कहते है – जो इस परम कथा को सुनाता है उसके जन्म जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते है | जो इसे प्रसन्नता पूर्वक पढता है उसकी समस्त ईच्छाए  पूरी हो जाती है |

 

आइये हम सब भी इस विजययात्रा में सम्मिलित होते है और भगवान शिव की स्तुति करते है  | आज की दिन शुभ ही नहीं मंगलकारी है क्योंकि आज नवरात्र के दिन में भगवान शिव के काशी  में प्रवेश होना अपने में ही कलयाण कारि है इसलिए आज सभी इस कथा को पढ़िए ही नहीं दुसरो सुनाइए भी इससे आपको जो फल प्राप्त होगा वो अनंत गुना हो जायेगा

 

प्रणाम

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