वाराणसी पुर पते स्थवनं शिवस्य

व्याख्यातं अष्टकमिदं पठते मनुष्य

विद्यां श्रियं विपुल सौख्यमनंत कीर्तिं

संप्राप्य देव निलये लभते च मोक्षं ||    

 


काशी की अनसुनी कहानी के समस्त पाठकगण को सादर प्रणाम | हम  सभी ने बढ़ी आनंद के साथ बाबा विश्वनाथ के विजय यात्रा में भाग लिया और अब काशी में स्थित अन्य सिद्ध लिंगो का अध्ययन कर रहे है जिस क्रम  में आज हम शैलेश्वर लिंग की स्थापना के बारे में अध्ययन करेंगे

 

कार्तिकेय जी कहते है – एक समय पर्वतराज हिमवान से उनकी पतिव्रता पतन मैना ने कहा – हे प्रभो ! मैंने विवाह के बाद अपनी बेटी गौरी का समाचार न पा सकी | महादेव जी कहाँ है ? उन दोनों का समाचार जानने के लिए कोई उद्योग करो |

हिमवान बोले – देवी मै अपनी प्रिय पुत्री को देखने स्वयं जाऊंगा | मै तो ऐसा समझता हु की जबसे गौरी मेरे घर से गयी है तब से घर की लक्ष्मी ही चली गयी | ऐसा कहकर अनेक प्रकार के रत्न और वस्त्र इत्यादि लेकर घर से चले | बहुत दूर  आगे जाने पर उन्होंने दूर से ही काशीपुरी को देखा जो की मणियों की ज्योति से जगमगा रही थी और अपने प्रकाश से पुरे आकाश  को प्रकाशित कर रही थी | इसी समय वहाँ उन्हें कोई तीर्थयात्री दिखाई दिया | पर्वतराज ने उसे बुलाकर आदर से पूछा – यहाँ का वृतांत कहो |यह कौन सा नगर है | इस समय इस पर किसका राज है |

वह तीर्थयात्री बोला- हे माननीय ! अभी तो पांच छह दिन ही बीते है , गिरिराजनंदिनी गौरी के पति भगवान विश्वनाथ यहाँ काशीपुरी में पधारे है | यहाँ के राजा दिवोदास अभी अभी परमधाम को पधारे है | अभी इस काशी नगरी के राजा भगवान शंकर है | वे ही सब कुछ देने वाले है |इस समय भगवान शिव गिरिराज नंदिनी के साथ काशी के ज्येष्ठेश्वर नामक स्थान में ठहरे हुए है | भगवान विश्वनाथ के लिए विश्वकर्मा जी जिस  विशाल मंदिर का निर्माण कर रहे है  , वह अपूर्व है | वैसा तो अपने कानो से मैंने कभी नहीं सुना है | जहाँ मणियों और रत्नो की दीवारे और खम्भे है | ऐसा और भी सुन्दर उसने उस मंदिर का वर्णन किया |

अपने दामाद के इस अद्भुत समृद्धि का वर्णन सुनकर  हिमवान लज्जा से दब गए और उन्होंने उस तीर्थयात्री को कुछ धन देकर विदा किया | और सोचने लगे- इस जगत में जितनी भी वैभव  की बाटे सुनी थी वह सभी मेरे दामाद के घर में उपस्थित है  | जिसने इस संसार को बनाया उसको  मै इतनी छोटी सी भेंट लेकर आया हु देने के लिए | अतः मेरे लायी हुई ये उपहार सामग्री बहुत थोड़ी  है | इससे इस समय ,मै इन महादेव का दर्शन नहीं करूंगा |

ऐसा सोचकर अपने अनुचरो को बुलाया और उन्हें कहा – सेवको ! तुम सब सूर्योदय होने के पहले यहाँ एक शिवालय का निर्माण करो | हिमवान की आज्ञा प्राप्त कर उन सेवको ने रात बितने के पहले ही वह एक सुन्दर सा शिवालय का निर्माण कर दिया | फिर गिरिराज ने उसमे शैलेश्वर नाम की शिवलिंग की प्रतिष्ठा की | उसके बाद उन्होंने पंचगंगा में स्नान किया और कालभैरव  को नमस्कार  व्  पूजन  करके  वहाँ अपनी लायी हुई रत्न वैभव को छोड़कर वे अपने अनुचरो के साथ लौट गए | उसके बाद सुबह शिव जी के गणने वरुणा के किनारे एक सुन्दर मंदिर को देखा और वो प्रसन्न  होकर शिव जी के पास गए और प्रणाम करते हुए बोले – देवाधिदेव ! हमने वरुणा के किनारे एक मंदिर देखा है जो आज के पहले वहा नहीं था | अपने गणोके मुख से यह बात सुनकर शिव जी पार्वतीजी के साथ उस स्थान पर गए और बोले – प्रिये ! सौभाग्य वश यह कृति तुम्हारे पिता की द्वारा बनाया हुआ शिवलिंग दिख रहा है। यह सुन माता पार्वती जी को बढ़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की -इस श्रेष्ठ लिंग में आप सदैव निवास करो। भगवान ने कहा – एसा ही होगा । जो।मनुष्य वरुणा जल में स्नान करके इस शिवलिंग की पूजा करेगा वह इस संसार मे दुबारे नही आएगा । इस शिवलिंग में मैं सदा सर्वदा निवास करूँगा ।

इस प्रकार आज हम लोग ने शैलेश्वर लिंग का महात्म्य का अध्ययन किया अब महामृत्युंजय मंदिर के समीप स्थित रत्नेश्वर लिंग का अध्ययन किया जाएगा ।

हर हर महादेव

 


अगर आप किसी समस्या से परेशान है तो ये फॉर्म भरे

[caldera_form id=”CF5d66376d5b503″]

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *